सत्यनाम
कबीर साहेब , सत्यनाम अपने शिष्यों को जपने को बोलते थे। और शिष्य सत्यनाम को श्रद्धा पूर्वक , प्रेम पूर्वक जपते थे।
सत्यनाम क्या है
सत्यनाम सृष्टि का सार है , सत्यनाम ही एक ऐसा नाम है जिसे ,गुरु भक्ति ,और , मात-पितु , भक्ति के साथ। सुमिरन किया जाए। तो इस मानव जन्म का उद्देश्य पूरा हो जाए , क्यूंकि मानव जन्म का सर्व प्रथम कार्य है। भक्ति और भजन , क्यूंकि भक्ति और भजन करने के लिए ही ये मनुष्य का जन्म मिला है। कबीर साहेब की एक वाणी है , दुर्लभ मानुष जन्म है देह न बारम्बार , तरुवर ज्यो पत्ती झड़े बहुरि ना लागे डार । अर्थ – ये मनुष्य का जन्म बहुत ही भाग से मिला है और ये बहुत दुर्लभ है , और अगर इस मनुष्य जन्म को ऐसे ही गवा दिए। बिना भजन भक्ति के तो ये दुबारा नहीं मिलेगा , जिस प्रकार डाल से जो पत्ता एक बार टूट कर जमीं पर गिर जाए। तो दुबारा दाल डाल पर नहीं लगता। ठीक उसी प्रकार ये मानुष का तन दुबारा नहीं मिलता बिना भजन भक्ति के।
रामायण में गोस्वामी तुलसी दास जी वाणी , बड़े भाग मानुष तन पावा , सुर दुर्लभ सब ग्रन्थ ही गावा। अर्थ – हमें मनुष्य तन मिलना मतलब हमारे , भाग बहुत बड़े थे तभी हमें ये मनुष्य तन मिला है। ये मनुष्य का तन इतना दुर्लभ है के देवता लोगो को भी नशीब नहीं होता , इस बात का प्रमाण सभी ग्रंथों में मिला है।
सत्यनाम का मतलब
सत्तनाम का मतलब जो नाम सत्य है , वो नाम कभी बदलता नहीं है। यही एक ऐसा नाम है जो सृष्टि होने से लेकर अभी तक है और सदा रहेगा। अगर सृष्टि ख़तम भी होता है , तब भी ये सत्तनाम रहेगा क्यूंकि इसी नाम से पूरी सृष्टि की रचना हुआ है। और ये कोई साधारण नाम नहीं है , ये मैं लिख रहा हूँ सत्तनाम , ये सिर्फ बताने के तौर पर क्यूंकि जिस सत्तनाम की बात कर रहा हूँ , वो नाम लिखने और बोलने में नहीं आ सकता , वो नाम अकह , है यानि वो कहने में नहीं आ सकता , अखंडित है , यानि वो नाम जुबा पर नहीं आ सकता क्यूंकि जो नाम जुबा पर आ जाता है वो खंडित हो जाता है , वो नाम निः अक्षर है। यानि लिखने में नहीं आ सकता , सत्यनाम उस नाम का उदाहरण है। बस इतना समझ लो उसी सत्यनाम से सारी सृष्टि हुयी है
सत्यनाम सुमिर ले प्यारे ये वक़्त जा रहा है , ये वक़्त दुबारा लौट के नहीं आने वाला है इस लिए सत्यनाम का सुमिरन जरूर करें
बिना सत्यनाम मानुष तन ए , बेकार है ताहि तो जानो सत्यनाम एक , सत्तनाम ,सत्तनाम ,सत्तनाम ,बोलो घर ही में रहो या दुनिया में डोलो ,
सत्तनाम कहने से होगा भलाई , यमराज के दूत तुम्हारे पास नहीं आएं
कबीर साहेब हर जगह इस नाम पर जोर दिए है ,
स्वाश-स्वाश सुमिरन करों बृथा स्वाश मत खोए ,
न जाने इस स्वाश को आवन होए ना होए
क्यूंकि ये स्वाश बहार गया है , वो दुबारा अंदर आएगा के नहीं इस बात का कोई ठीक नहीं , इसलिए हर स्वाश में सुमिरन करें।
इस संसार का हर सुख सुविधा धन दौलत सब छूट जायेगा , सिर्फ उस नाम की कमाई अपने साथ जायेगा। जब माता के गर्भ में उल्टा लटके रहते है तभी हम सभी स्वीकार करते है। के संसार में जा कर भजन भक्ति करेंगे , लेकिन इस संसार में आकर सभी कुछ भूल जाते हैं। और याद कब आता है जब अंत समय में यमराज सामने खड़ा रहता है तभी याद आता है के हमने भक्ति भजन करने के लिए बोल था। पर उस वक़्त बहुत देर हो चूका होता है और चुपचाप यमराज के दिए गए दण्ड को स्वीकार करते है
जीवन यौवन राजमद , अविचल रहा ना कोई
जा दिन जाए सत्संग में जीवन का फल सोए
अर्थ – ये जीवन , ये जवानी , ये राजमद , इनमे से कोई हमेशा नहीं रहने वाला है। हमारे जीवन का फल वो है जब हम सत्संग या भजन में जाते है