इस आग बांधने का जंजीरा मंत्र से किसी भी प्रकार का आग लगा हो। उसे बाँधा जा सकता है , उसे रोका जा सकता है। इस आग बांधने का जंजीरा मंत्र को बताये हुए बिधि द्वारा सिद्ध किया जाये तो। ये निश्चय ही काम करेगा।
आग बांधने का जंजीरा मंत्र
।। अग्नि को शांत करने का जंजीरा।।
शम्भो शम्भो करी पुकार। तीनो शब्द करे गुंज्जारा।।
पानी दम करि गिरदा करै। जहाँ प्रगट बाहर न परे।।
कहै कबीर बँकेज बुझाई। अग्नि तेज शीतल हो जाई।।
।।अग्नि शांति करने का जंजीरा।।
अग्नि जलै अग्नि पैझालै , अग्नि छोड़े स्थान।।
मान सरोवर विमल जल , सत्य पुरुष करे स्नान।।
सत मुनींद्र प्रताप यह , शरीर न बेधे आग।।
गुरु प्रताप है जांहि पर, वाको हैं बड़ भाग ।।
आग बांधने का जंजीरा मंत्र बावन जंजीरा के सिद्ध करने की विधि
ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, आश्विन, कार्तिक, माघ, फाल्गुन, चैत्र इन शुभ मासों में से कोई मास हो उस मास में जब पूर्णिमा या चतुर्दशी सोमवार, बुधवार, गुरुवार अथवा शुक्रवार की हो सिद्ध करें।
यह सद्गुरु का पाठ या व्रत पूर्णिमा ही को होता है। परन्तु पूर्णिमा जब ३० दण्ड से कम रहे तब चतुर्दशी को ही शुरु करें। सिद्ध इस प्रकार करें कि पूर्णिमा या चतुर्दशी जिस दिन उपरोक्त शुभ दिनों में से कोई दिन हो उस दिन व्रत करे, फलाहार करें।
जाप का स्थान एकान्त हो किसी प्रकार हल्ला-गुल्ला न हो। जिस स्थान में पाठ करने के लिए निश्चित किये हों, उस स्थान को श्वेत मिट्टी तथा नये वस्त्र से लीप कर पवित्र करें।
चन्दन और इत्र छिड़क दें, श्वेत सुगन्धित फूलों में जैसे-चम्पा, चमेली, बेली, मोगरा इत्यादि जो प्राप्त हो सके, लावें । तीन घंटा या सवा पहर रात्रि व्यतीत होने पर जाप आरम्भ करें।
जाप इस प्रकार करें, जहाँ जाप करने का स्थान निश्चित किये हों उपरोक्त विधि से लीप-पोत कर पवित्र किये हुए स्थान में चावलों के आटा से चौका पूरें, कलशा में शुद्ध जल भरकर उसमें पैसा, कसेली डाल दें तब कलशा के मुँह पर आम के पाँच पत्ते धरें, और उसपर गौ घृत से दीपक जलावें अर्थात् कबीरपंथी महन्त साहब जिस प्रकार से चौका आरती के समय चौका पूरते हैं उसी प्रकार चौका पूर कर कलश आदि रखकर यह कार्य सम्पन्न करें।
प्रसाद के वास्ते-पान, पेड़ा, केला, शक्कर, छुहारा, नारियल, सुपारी, बादाम, लोंग, इलायची इत्यादि सवा पवा भोग मे रखें और धूप के लिये देवदारु, श्वेतचन्दन, कपूर, घी में मिलाकर आम की लकड़ी की अग्नि पर हुमाध देवें (धूप देवें)। तुलसी या श्वेत चन्दन
की माला से जाप करें। श्वेत वस्त्र का आसन रखें, पूरव या उत्तर मुख होकर जाप करें। नित्य १०८ बार जाप करें, जाप करने से पहले सद्गुरु का ध्यान कर लें, ध्यान इस श्लोक को पढ़कर करें-
आग बांधने का जंजीरा मंत्र ,ध्यान श्लोक,
ध्यायेत् सद्गुरु श्वेतरूपममलं श्वेताम्बरैः शोभितं, कर्णे कुण्डल श्वेतशुभ्रमुकुटं हीरा मणि मंडितम् ।
नानामालमुक्तादि शोभित गलं पद्मासने सुस्थितं । दयाब्धि धीर सुप्रसन्न वदनं सद्गुरुं तन्नमामिहं ||१|| द्वैपदं द्वै भुजं प्रसन्न वदनं द्वै नेत्रं दयालं, सेलीकण्ठमालमूर्ध्वतिलकं श्वेताम्बरी मेखला, चक्रांकितविचित्रटोपलसितं तेजोमयं विग्रहं, वन्दे सद्गुरु योगदण्ड सहितं कबीरं करुणामयम् ।।२।।
इस प्रकार ध्यान कर लेने के बाद जंजीरा का पाठ आरम्भ करें। जाप जितना हो सके करें। कम-से-कम एक हजार एक सौ जाप तो अवश्य करें। पाठ पूरा लेने पर कबीर पंथी साधु को यथाशक्ति भोजन करावें । सिद्ध हो जावे तब रोगी को झाड़ देवे आरोग्य लाभ करें। यदि नित्य पाठ करता रहें तो उसको तीनों काल की बातें मालूम होती रहेंगी।
इस विधि करे आग बांधने का जंजीरा मंत्र