बावन जंजीरा | भूत प्रेत बांधने का जंजीरा | 1 Magic Of Remove Ghost

सत्य नाम

नमस्ते मित्रों इस ब्लॉग पोस्ट में बावन जंजीरा के उन मंत्रो का उल्लेख दिया गया है। जिनको सिद्ध करके भूत प्रेत आदि से छुटकारा पाया जा सकता है और बहुत सारे रोगो का भी मंत्र दिया गया है।  आशा करता हूँ आप सभी को ये पोस्ट पसंद आएगा।

 जंजीरा
जंजीरा

 ।। सर्व बंधन जंजीरा ।।

अर्थात् सभी प्रकार के बाँधने का जंजीरा

श्वेत घोड़ा, श्वेत पलान। चढ़ि आये सत्कबीर सुजान।।

जो कोई आवे मारे करन्ता तेली के लटा परन्ता कलाल के भट्ठी परन्ता सार देश के आदमी प्रदेश परदेश का आदमी सार देश कबीर दाना केता खाय सवा सेर तो खाय अस्सी कोस चलावे बन्द बाँध बार सोलह कला को बाँध छप्पन सो वीर बाँध आठ कोट भैरों बाँध संखनी बाँध डाकिनी बाँध लाव लुता बाँध देव बाँध भूत बाँध चोर बाँध चोरट बाँध दीठ बाँध मूठ बाँध टोना बाँध नीन बाँध तप-तिजारी बाँध एतना सुनके न बाँध तो तेरी माँ के दूध हराम तीसरा रोज ही न गुरु कबीर शिर पर खड़े तब सब सन्तन के सरदार अजर नाम के रक्षा अजर पुरुष अस्थिर मते चलु कबीर के निर्मल भया शरीर सत्तपुरुष की चौकी सत सुकृत है साथ सत्कबीर अजर शब्द है मैटो सकल विषाद वज्र जंजीरा मरही का सत सुकृत जंजीरा वज जंजीरा दक्षिण देवी नो बहिन को बाँध घाट बाट मरी मसान को बाँध ब्रह्मा विष्णु महेश को बाँध ई अकार बाँध भैरो वीर बजरंग को बाँध अग्नि मुख आवें तो अग्नि को बाँध जल मुख आवे तो जल को बाँध पवन मुख आवे तो पवन को बाँध पृथ्वी मुख आवे तो पृथ्वी को बाँध पाँच तत्त्व पंचभूत आत्मा को बाँध सुरति निरती को बाँध इतना वज्र जंजीरा सुन के जो न आन करे तो सतसुकृत की दोहाई ।

विधि

इस विधि जंजीरा से तीन बार पढ़कर धूली उड़ा दें तो गाँव-ठाँव सब बंध जाय मार्ग में चलते चोर डाकू सर्प आदि सब बन्ध जावे ।

(२)

।। भूत-प्रेतादि बाँधने का जंजीरा ।।

कलि में भूत प्रेत वरि आई। वज्र जंजीरा देहु पठाई ।।

वज्र जंजीरा वज्र के धार । साधु संत के हैं रखवार ।।

जहँ लग शब्द चले चौधारा। बाँधी घेरी चौखण्ड वारा ।।

बाँधो ठोकर ठाटर वार। बाँधो लोह अग्नि की डार ।।

बाँधो चार चुगुल बँटपारा। बाँधो दूती बोल बाँधो मीर ।।

चुक जो सुने ना श्रवण खोल खूनी का खून बाँधो गुलाम का आब बाँधो छूरी का धार बाँधो मूठ कटार बाँधो जम्बू वर बार बाँधो जम्बू धर धार बाँधो आवती परी बाँधो विष का वीरा बाँधो कमान को तीर बाँधो तुपक की गोली बाँधो कुहकना बान बाँधो आकाश की बिजुली बाँधो अष्टकुली नाग बाँधो वीर अवीर बाँधो अपनी काया को बधनी बाँधो रोग शोक बाँधो दुःख दरिद्र बाँधो अनेक विषधर बाँधो टोना टामन बाँधो इष्ट भैरो पाँचो पीर बाँधो डायन का मुख बाँधो सामन बहिका बाँधो काली बाँधो देशपति के तेज बाँधो माथा के फन्द बाँधो मैं बाँधो तो बोल सद्गुरु वचन प्रमान गुरु कबीर सिर पर खड़े सब सन्तनके सरदार अजर नाम की रक्षा अजर पुरुष अस्थिर मते चले कबीरके निर्मल भये शरीर सतपुरुष की चौकी सतसुकृत है साथ सत कबीर का अजर शब्द है मेटे सकल विषाद ।

विधि

इस जंजीरा को पानी में ३ बार पढकर भूत पकड़े हुए मनुष्य के मुँह पर छींटा मारे तो भूत भाग जावे।

(3)

।। डायन भूत-प्रेतादि को बाँधने का जंजीरा । ।

बाँधो धरती बाँधो आकाश बाँधा मेर मन्दिर कैलास। बाँधो डायन करे चिकार बाँधो दूत भूत सब किला । अजर नाम मुक्तावे शरीरा येही शब्द से सबको बाँधो सतगुरु सत्त कबीरा।

विधि

यदि किसी मनुष्य को भूत-प्रेत पकड़ा हो या डायन किया हो तो इस जंजीरा से पढ़कर झाड देवे तो आराम हो जावे ।

(४)

।। दूत भूत आदि बाँधने का जंजीरा ।।

जल बाँधो थल बाँधो पैठ पाताल धर बासुकी नाग बाँधो देवी आदि कुमारी बाँधो लोहे की जहाँ कोठरी रूपे वज्र का पेहान तामें धर बाँधे नही सोधनी भूत-भेत ने करहे का तेरे गुरु की वाचा झूठी मेरे गुरु की वाचा फुरे कहै कबीर निष्फल नहीं जाय सत्त शब्द में रहे समाय सत्त शब्द औ पाँचो बान भाग यमरा दिये पयान रोग राई विषहार टर जाई कंचन अगर शरीर हो जाय सतनाम की परी दोहाई दूतभूत सब बाँध चलाई।

विधि

इस जंजीरा से पढ़कर भूत-प्रेत को बाँध दे तो बंधा रहे, कहीं जाप करे तो उस स्थान पर जल पढ़कर जमीन पर छिड़क दे तो वहाँ तक सर्प आदि कोई जीव आसन के निकट न आ सकेगा।

(५)

।। हथियार तोप बन्दूक आदि बाँधने का जंजीरा ।।

वार बाँधो पार बाँधो बाँधो तुपक ताई तुपक का पलीता बाँधो सत्तनाम की दुहाई अंग बाँधो यम बाँधो धोरे का सवार बाँधो भाला वाले धनुष वाले का हाथ बाँधो सत्नाम की दोहाई लोहे झरे लोहा झरे झर झर परे जंजीर तुपक वान गोला झरे झरे कम न और तीर हाथ खर्ग तृण ना टुटे बत्तीस वान देह नहीं खुटे निज प्रतीति शब्द की आनो सत्तनाम करि हैं रक्षा आकी रंग लोहे की आन झरे बत्तीस खर्ग को धार चौदह यम की हाथ धरो सोहं तार पुरुष होय रखबार सोहं तार पुरुष रक्षा करें तीर तुपक दूर सब परे हाथ खर्ग गज चक्कर त्रिशूल दीन देवारी सोहं तार पुरुष मोहे लेव उबार सतगुरु केवल कोई ना यमकरि हैं धात यम मारों दूर करों धरो मस्तक पर हाथ उलट आवे पलट जाय काल संघी ताहिं को खाय मारों भूत विडारों काल कलि में जीव करों प्रतिपाल जो कोई करे वोही पर परे पिण्ड प्राण की रक्षा करे साहब बन्दीछोर कबीर ।

विधि

धूरी पर इस जंजीरा को तीन बार पढ़ के फूंक दे तो बन्दूक, भाला, धनुष आदि हथियार बन्ध जावे कुछ भी काम न करे।

(६)

 ।। यम डायन भूत आदि बाँधने का जंजीरा ।।

बाँधो ब्रह्मा विष्णु मुरारी। जिनके किये सकल संसारी ।।

यम के बाहन बाँधो दूनी । बाँधो सीखर जहाँ लो गूनी ।।

सब यम बाँधो शब्द की डोरी बाँधो डायन लक्ष करोरी ।।

दीष्ट मुष्ट सब बाँधो झारी । सत सुकृत अस कहें पुकारी ।।

सत्नाम की परी दोहाई । दूत भूत सब चले पराई ।।

विधि

इस जंजीरा से पढ़कर फूंक दे तो यम, डायन, भूत-प्रेत आदि सब बँध जायेंगे, किसी बालक पर पढ़कर फूंके तो दीठ नजर गुजर नहीं लगे बालक चंगा स्वस्थ्य रहे ।

(७)

 ।। डायन कमायन आदि के नजर बाँधने का जंजीरा ।।

बाँधो यंत्र मंत्र सब झारी । बाँधो ब्रह्मा विष्णु मुरारी ।।

यम को वाहन बाँधों जनी । बाँधों सृष्टि जहाँ ले गुनी ।।

बाँधो अष्ट कष्ट नव सूता। बाँधो हनुमत अञ्जनी के पूता ।।

बाँधो डंकनी सकनी करो सिंगार। बाँधो राम एक ऊँकार ।।

बाँधो जहँ लग सुमरो देवा । बाँधो देव भूत करे सेवा ।।

बाँधो देव भुत दुर्मति होय। आये सत्कबीर चंदन को विन्दा ।।

किये लागे बजर किंवार। जेवारी कोय छूना सके वारीके रखवार ।।

साहब कबीर रक्षपाल । कहैं कबीर सुनो धर्मदास जंजीरा शब्द करो प्रकाश ।।

विधि

जब किसी को झाड़ने जाँय तब पहले इस जंजीरा को पढ़कर अपनी देह की रक्षा कर लेवें तब मंत्र (मंत्र पढ़ने वाले) पर डाकनी साकनी का गुन चलाया नही लगें प्रेतादि पकड़ा हो तो वह बोलने लगे ।

(८)

 ।। रक्षाबंधन जंजीरा ||

सर काग बीघ बाघ कूकरा मंजार नाग नाहर विषधर घनै कबीर करौं कबीर गुसाई के कबही होय विनाश चाँद जेहैं सूर जैहैं धरनी आकाश सोई वचन कहैं कबीर ने सोई वचन प्रमाण ।

विधि

यदि कहीं बीहड़ या खौफ खतरनाक जगह पर रहने का मौका पड़ जाय तब इस जंजीरा को पढ़कर अपने चारों तरफ घेरा दे दें या पढ़कर जल छिड़क दें तो सर्प-बिच्छू, बाघ, सिंह आदि कोई भी घात न करे या कहीं विकट रास्ता जाने का मौका हो तो इस जंजीरा को पढ़ता जाय तो हिंसक पशुओं और सर्प-बिच्छुओं से निर्भय रहे।

(९ )

 ।। भूत भगाने का जंजीरा ।।

जल बाँधों जलाहल बाँधों दुर्गा आदि कुमारी पैठ पताल वासुकि के बाँधों औ बाँधों हनुमान बली लोहेकार वज्जर किवार भूत भागे शब्द की झार जहाँ मेरी दृष्टि परे और सिद्धि के वाचा टरे जाते • सतगुरु रक्षपाल रखवारी ।

विधि

जिसको भूत छूआ हो उसे इस जंजीरा से जल पढ़कर मुँह पर छींटा मारें या वही पानी पिला दें तो भूत भाग जाय ।

(१०)

।। दूसरा ।।

कहो जंजीरा मंत्र सुरा बावन लाख अस्थूल शब्द हमारी फिरे संसारा धर्म राय भाखीकर डारा भागो धर्म गयो पताला भागों रावन भागे डायन भागे चुरेलिन देई चिकार मटाया मसान सब भागे नातो शब्द हमारो मान जार बार भस्म कर डारो पर माया अष्टमी भवानी सकत निरंजन निराकर सतपुरुष की आन अजर नाम की फिरि दोहाई दूत भूत सब चले पराई।

विधि

इस जंजीरा से पानी पढ़कर मुँह पर छींटा मारें तो प्रेत चिक्कार मार कर भाग जावे और शेष पानी पिला देवे।

(११)

।। तीसरा ।।

मारों डंडा मारों खण्डा मारों भूत करों नौ खंडा मारों भूत भूत के राजा मारों भूत बजाऊँ बाजा कबीर के हाथ सार की कबीर ठाढ़े काट के छाती आन कुँआँ के पानी आको काटो धरो हाँक परी धर्मदास के निर्मल भये शरीर जापर दया करें कबीर

विधि

कुआँ से एक हाथ से पानी भरकर लावे और उस जल पर इस जंजीरा को तीन बार पढ़ कर रोगी को पिलायें तो भूत तुरंत भाग जाय।

(१२)

 ।। मार्ग रक्षक जंजीरा ।।

घाट बाट औघट बनाऊँ मोंहि धनी के आस मत्थे चले कबीरके भूखन मरुं पियासा बाँधो नाहर नाहरा कूकरा मंजार बाटमों
कबीर जंजीरा बावन कसनी सतगुरु कबीर बाँध डार राह करों मैदान चोर न भेटे बाघ न खाय रौंधा सर्प लगे नहिं धाय पाँव तले नाग परे पर हर जाय सत्त कबीर की फिरी दोहाई बावन लाख दगा मिट जाई सत सुकृत कहो मन लाय अग्नि पवन शीतल हो जाय।

विधि

रास्ता चलते चलते सांझ हो जाय और रास्ता में अंधेरा के कारण सर्पभय, बाघभय, चोर प्रेतादि का भय हो तो इस जंजीरा को पढ़ता जाय तो सब जीव रास्ता छोड़ कर हट जायेंगे कोई जीव घात नही करेगा, सर्प-बिच्छू भी डंक मार न सकेगा।

(१३)

।। दूसरा ।।

कागे कागरो विकार कूकरा मंजार नाग नाहर दूत भूत बट पार सब कहँ बाँधे कबीर गोसाई आन घाट ले डार घाट बाट बन औघटे मोंहि खसम की आस मत्थे चले कबीर के कबहुं होय विनाश।

विधि

रास्ते में यह जंजीरा पढ़ता जाय तो किसी जीव जंतु का भय न हो, कुत्ता, बिलाय बाघ दूत भूत आदि किसी का भय न हो।

।। तीसरा ।।

बाघ बीघ औकूकरा मंजार नर नाहर विषयादिक मुआ भूतक मसान मलेच्छ बाँधो कबीर गुसाई अंध कूप मे डार घाट बाट बन औघटे मोंहि खसम की आस मत्थे चले कबीर के कबहुं न होय विनाश हाटरी से हाटरी टोट कारी आये अर्मी कुल बलाय टारी मीरा शाह आद अहमद सुल्तान कबीर सत्तर से कुल्लावे की जंजीर कस कस मारे मीरा शाह अहमद सुल्तान कबीर ।

विधि

बन या भयानक रास्ते मे यदि कुबेला हो जाय तो इस जंजीरा को पढ़ता जाय तो बाघ, कुत्ता, बिलार, भूत आदि किसी का भय न हो और न कोई घात करे।

बावन जंजीरा ।। मृगी का जंजीरा ।।

अजर नाम सबते निज सारा। यह शब्द से जीव उबारा।।

कर्म भर्म भया सबं दूर। सतगुरु शब्द रहा भर पूर । ।

मृतुक रोग मृगी का होई। अजर नाम सो दीन्हा खोई ।।

यह निज शब्द जपे जो साध। मिट गई मृगी रोग असाध ।।

कहैं कबीर प्रतीत हमार । येहि शब्द सो जीव ज्वार ।।

विधि

जिस मनुष्य को मृगी आवे वह मनुष्य इस जंजीरा को प्रातः काल स्नान करके २१ बार पढ़े तो मृगी रोग छूट जाय ।

(१६)

बावन जंजीरा ।। अधकपारी के दर्द झारने का जंजीरा ।।

कारी छेरी लभथनी हरिहर थोथा खाया हाँक परे कबीर गुसाई वे आधा शीशी जाय ।

विधि

इस जंजीरा को पढ़ता जाय और ललाट को अंगुली से पकड़ कर दबाते हुये अंगुली चलाया जाय, पाँच बार जंजीरा को पढ़कर झारे तो आधे माथे का दर्द आराम हो जाय।

(१७)

बावन जंजीरा || डाढ़ के दर्द व कीड़ा झारने का जंजीरा ||

अरे अरे ग्वानि तु बन जारिन पहर पर्वत से उतरे ग्वालिन फलाने के डाढ़ के कीड़ा मारों जन्म जन्म के कीड़ा टारों ऊँ नमो आदेश गुरु को

विधि

(डाढ़ चौड़े दाँत को कहते हैं) यदि डाढ़ मे दर्द हो या कीड़ा पड़ जाय तो इस जंजीरा से झार दें तो दर्द और कीड़ा आराम हो जाय।

(१८)

बावन जंजीरा ।। कुत्ता का विष झारने का जंजीरा।।

सप्त खण्ड विकट घाट धार बाँधों सात पके न फूटे पीरा न करे वाचा कबीर गुसाई के फूरे।

विधि

राख पर २१ बार इस जंजीरा को पढ़ के कुत्ता जहाँ काटा हो लगा दें तो आराम हो जाय। और गुड़ पर पढ़ कर दे दें और रोगी को थोड़ा-थोड़ा सात दिनों तक खाने को कहे।

(१६)

बावन जंजीरा ।। दूसरा जंजीरा ,कुत्ता का विष झारने का जंजीरा।।

कागरो कूकरो उन्दुरो मंजार नर नाहर चोरी करे लंका के उजियार लंकार अस कोट समुद्र ऐसा खाई उतरे विष सत सुकृत दोहाई कबीर इसको खाय ना मरे तो निर्विष हो जाय दोहाई सत्त कबीर गुरु की।

विधि

धुअन और पीपल के पत्ता से झारे, डल्ली धुअन को महीन

पीस कर बुकनी बना ले, सात पत्ता पीपल का लेकर सातों से झारे, हंसुआ को गोइठा (उपलों) के आग में तपावे जब लाल हो जाय तब पत्ता पर थोड़ा थोड़ा धुअन लेकर जहाँ कुत्ता का दाँत गड़ा हो उसी जगह जरा ऊपर अर्थात जखम के ऊपर पीपल के पत्ता पर धुअन को तपाये हँसुआ से घुमावे और जंजीरा (मंत्र) पढ़ता जाय। सात बार एक पत्ता पर पढ़ कर झारें इसी प्रकार सातो पत्तों पर पढ़-पढ़ के झारे तो कुत्ता का विष उत्तर जावे, जखम न होवे।

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