पेस है सद्गुरु Kabir Saheb ke Bhajan जो की बहुत लोकप्रिय भजन है Chadariya Jheeni Re Jheeni Lyrics के साथ। इस भजन में मानव तन का गुण रहस्य छुपा हैं।
Kabir Saheb ke Bhajan , चदरिया झीनी रे झीनी
साखी :
कबीर ,जब हम पैदा हुए ,के जग हॅसें हम रोये
ऐसी करनी कर चलो के, हम हॅसें जग रोए
अर्थ : हम जब पैदा होते हैं तो , तो सभी लोग खुश होते है , खुशियां मनाते है और हम रोते है। लेकिन कबीर साहेब कहते है , के ऐसी करनी कर के जाओ के तुम हॅसते-हॅसते इस दुनिया से जाओ , और तुम्हारी अच्छे करनी को लोग याद करके रोये
Kabir Saheb ke Bhajan चदरिया झीनी रे झीनी
चदरिया झीनी रे झीनी , के राम नाम रस भिनी
चदरिया झीनी रे झीनी , के राम नाम रास भिनी
चदरिया झीनी रे झीनी …..
अष्टकमल का चरखा बनाया , पॉँच तत्त्व गुण तीनि
अष्टकमल का चरखा बनाया , पॉँच तत्त्व गुण तीनि
नौ-दस मॉस बुनन को लागे , मूरख मैली किनी
चदरिया झीनी रे झीनी , के राम नाम रस भिनी
चदरिया झीनी रे झीनी
जब मोरी चादर बन घर आयी , रंगरेज को दिनी , चदरिया
रंगरेज को दिनी , जब मोरी चादर बन घर आयी रंगरेज को दिनी
चदरिया , रंगरेज को दिनी ,
ऐसा रंग रंगा रंगरे ने ,ऐसा रंग रंगा रंगरे ने ,
लालो लाल कर दिनी चदरिया , झीनी रे झीनी
के राम नाम रास भीनी , चदरिया झीनी रे झीनी
चादर ओढ़ शंका मत करिहो , ये दो दिन तुमको दिनी ,
चदरिया , दो दिन तुमको दिनी ,
चादर ओढ़ शंका मत करिहो , ये दो दिन तुमको दिनी
चदरिया , दो दिन तुमको दिनी ,
मूरख लोग भेद नहीं जाने ,
मूरख लोग भेद नहीं जाने,
दिन-दिन मैली किनी चदरिया झीनी रे झीनी ,
के राम नाम रास भीनी चदरिया , झीनी रे झीनी ,
ध्रुव प्रह्लाद सुदामा , ने ओढ़ी , शुकदेव ने निर्मल किनी ,
चदरिया , शुकदेव ने निर्मल किनी ,
ध्रुव प्रह्लाद सुदामा , ने ओढ़ी , शुकदेव ने निर्मल किनी ,
चदरिया , शुकदेव ने निर्मल किनी
साहेब कबीर ने ऐसी ओढ़ी , ज्यों के त्यों धर दिनी चदरिया ,
झीनी रे झीनी ,
साहेब कबीर ने ऐसी ओढ़ी , ज्यों के त्यों धर दिनी चदरिया ,
झीनी रे झीनी , Chadariya Jheeni Jhini Jhini Bini Chadariya
Kabir Saheb ke Bhajan भजन साहेब आगमन
ज्येष्ठ का महीना गर्मी है बड़ा जोर।
प्रगट भये कशी में कबीर बंदीछोड़।।
अष्टानन्द स्वामी बैठे ध्यान लगाई।
तेज़ स्वरुप साहेब के दर्शन पाई।।
फूल पर खेले ले बालक चित चकोर।
प्रगट भये कशी में कबीर बंदीछोड़।।
रूप सलोना देखी अति हरषाई।
नीमा जी लीहली गोदीया उठाई।।
नीरू नीमा लेके चले ले घरवा की ओर।
प्रगट भये कशी में कबीर बंदीछोड़।।
साह सिकन्दर कसनी लीन्हा।
हार गयों भयो चरण अधीन।।
साहेब जी के लीला जाने ला कोई-कोई।
प्रगट भये कशी में कबीर बंदीछोड़।।
धरमदास का करत बड़ाई।
नवलाख सम्पति दिहलें लुटाई।।
मर्जी है गोसईया ले जाओ जवना ओर।
प्रगट भये कशी में कबीर बंदीछोड़।।
Kabir Saheb ke Bhajan अरजी चरणीया से दूर जनि करि
बानी हम राउर पग धुरी , चरणीया से दूर जनि करी ।।
दूर जनि करि साहेब दूर जनि करि , राख लिही नयन के हज़ूरी। ……….चरणीय से दूर जनि करि , बानी हम राउर पग धुरी ।।
कवनों सहूर नईखे बुद्धि लड़िकाइया बा ,रोज-रोज करिले खसूरी। ………चरणीय से दूर जनि करि , बानी हम राउर पग धुरी ।।
रउरे हमार माता-पिता सत्तगुरु स्वामी , रउरे हमरा अँखियाँ के नूरी। ……..चरणीय से दूर जनि करि , बानी हम राउर पग धुरी ।।
रउरा से खाली नईखे कवनो जगहिया , सगरो देखिले भरपूरी। ……….चरणीय से दूर जनि करि , बानी हम राउर पग धुरी।।
कर जोरि पॉव पड़ी बिनती करत बानी , माँग तानी एतने मजूरी। ……..चरणीय से दूर जनि करि , बानी हम राउर पग धुरी।।
Kabir Saheb ke Bhajan मंगल
साहेब रउरे दरश बिना सुखल सकल शरीर , नयन अभागिन ना सूखे आवत भरी-भरी नीर।
सत्त सुकृत सत्तनाम जगत जाने नहीं , बिना हो प्रेम परतीत कहल माने नहीं।
जग में जीव अनेक चीन्हत नहीं पीव को ………2 हम त केतनो कहिले समझाई , चौरासी के जीव को …..2 ..
जो सुख में तुम मगन रहो संसार में …….2 सो सुखवा सपनें के राजा झाँखों यमभार में ……2
आगे धाम अखण्ड पद निरवान हैं …..2 उहवाँ भूख ना नींद नि:अक्षर नाम है ……2
मंगल कहहीं कबीर सुनहो धरम नगरा , हंसा चलें लें सत्यलोक बहुरि नहीं आवना।।