Kabir Saheb Ki Aarti | कबीर साहेब आरती | God Kabir 2023

सत्यनाम 

सभी भक्त प्रेमी को साहेब बंदगी, आज इस ब्लॉग में Kabir Saheb Ki Aarti लिख रहा हूँ। आशा करता हूँ आप सभी को पसंद आएगा साहेब बंदगी

Kabir Saheb Ki Aarti

 

Kabir Saheb Ki Aarti

 

आरती गरीब निवाज, साहेब आरती हो ।।

आरती गरीब निवाज, साहेब आरती हो ।।

आरती दीनदयाल, साहेब आरती हो ।।

आरती दीनदयाल, साहेब आरती हो ।।

ज्ञान अधार विवेक की बाती, सुरति ज्योत जहाँ जाग ।।

ज्ञान अधार विवेक की बाती, सुरति ज्योत जहाँ जाग ।।

आरती करूं सद्गुरु साहेब की, जहाँ सब सन्त समाज ।।

आरती करूं सद्गुरु साहेब की, जहाँ सब सन्त समाज ।।

दरश परस गुरु चरण शरण भयो, टूटि गयो यम के जाल ।।

दरश परस गुरु चरण शरण भयो, टूटि गयो यम के जाल ।।

साहेब कबीर सन्तन की कृपा से, भयो परम परकाश ।।

साहेब कबीर सन्तन की कृपा से, भयो परम परकाश ।।

Kabir Saheb Ki Aarti जय जय सत्य कबीर 

                                                 जय जय सत्य कबीर 

सत्यनाम सत सुकृत, सतरत हतकामी । विगत क्लेश सतधामी, त्रिभुवन पति स्वामी ।। टेक ॥।

जयति जयति कबीरं, नाशक भवपीरम् । धार्यों मनुज शरीरं, शिशुवर सर तीरम् ।। जय ।।

कमल पत्र पर शोभित, शोभाजित कैसे । नीलाचल पर राजित, मुक्तामणि जैसे ।। जय ।।

परम मनोहर रूपं, प्रमुदिल सुखराशी । अति अभिनव अविनाशी, काशीपुर वासी ।। जय ।।

हंस उबारन कारण, प्रगटे तन धारी । पारख रूप विहारी, अविचल अविकारी ।। जय ।।

साहेब कबीर की आरती, अगणित अघहारी । धर्मदास बलिहारी, मुद मंगलकारी ।। जय ।।

Kabir Saheb Ki Aarti ध्यायेतं सद्गुरु

ध्यायेतं सद्गुरु श्वेतरूपममलम् श्वेतांबरं शभितम् ।

कर्णेन कुण्डल श्वेत शुभ्र मुकुटं हीरामणी मंडितम् ।

नानामालमुक्तादि शोभित गला पद्मासने सुस्थितम् ।

दयाब्धिधीर वीर सुप्रसन्न वदनम् सद्गुरु तन्नमामि ।

द्वै पदं द्वै भुजं प्रसन्नवदनं द्वै नेत्रं दयालम् ।

सेली कण्ठमाल ऊर्ध्व तिलकम्, श्वेताम्बरी मेखला ।

चक्रांकित शिर टोप रत्न खचितम् द्वै पञ्चताराधरे ।

वन्दे सद्गुरु योग दण्ड सहितम् कब्बीर करुणामयम् ।

ध्यान मूलं गुरोर्मूतिः, पूजा मूलं गुरोः पदम् ।

मन्त्र मूलं गुरोर्वाक्यं, मोक्ष मूलं गुरोः कृपा।

Kabir Saheb Ki Aarti

Kabir Saheb Ki Aarti जा घर आरती दास करात है

जा घर आरती दास करात है , जन्म – जन्म के पाप हरत है। 

अदली दल पोहपन के माला , सतसुकृत जा घर पगु धरा।।

परम अग्र गुलाब सुवासा , जहाँ घर हंस करे सुखवासा।।

अनहद ताल परवावज बाजे , स्वेत सिँहासन छत्र विराजे।।

नाम एकोत्तर सुमरे जबही , सतगुरु बैठे सिंहासन तबही।।

ततमाता नारियल परवाना , सतगुरु कृपा होए निर्वाणा।।

नारियल मोरत वास उड़ाई , पल एक साहेब बिलम्ब न लाई।।

सतगुरु दया प्रगट जब होई , पाय प्रसाद महाफल सोई।।

महा प्रसाद तत्त्व विधि पावै , कहै कबीर  सतलोक सिधावै।।

Kabir Saheb Ki Aarti आरती मंगल गाऊं 

आरती मंगल गाऊं सतगुरु साहेब के मनाऊं।।

पूरब दिशा से बाँकेज गुरु आये , कलश दिप जलाऊं।। सतगुरु साहेब के ………..

पश्चिम दिशा से सहतेज गुरु गुरु आये , स्वेत गद्दी लगाऊं।। सतगुरु साहेब के ……..

दक्षिण दिशा से चतुर्भुज गुरु आये , अमृत दल धराऊ।। सतगुरु साहेब के ……..

उत्तर दिशा से धर्मदास गुरु आएं , आरती ज्योति जलाऊँ।। सतगुरु साहेब के ……….

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