Satlok Mahima | सत्यलोक Amazing Satlok 1

आज हम इस ब्लॉग के माध्यम से Satlok के बारे में बताऊंगा , Satlok  के बारे में बहुत लोग झूठी झूठीं बातें बनाते  है , सभी भक्त प्रेमियों को साहेब बंदगी आशा करता हूँ ये ब्लॉग आप सभी को पसंद आएगा

 

Satlok

 

Satlok क्या है 

 

Satlok एक देश है जो सात द्वीप नौ खंड , ३ लोक से परे है जिसे  अमर लोक  दयाल देश भी कहा जाता है , कुछ लोगो  को कहते हुए मैंने सुना है के मै  Satlok  जब गया तो वहा  अमुक चीज़ खाया जब मै  उठा तो उसका  स्वाद मुझे महसूस हो रहा था ।

लेकिन मै  ये बता दूँ ये बातें जो लोग भी बोलते है वो बिलकुल झूठ है , अब मैं आप सभी को Satlok  के बारे में बताता हूँ , Satlok   वह देश है जहा से हम सभी आये है हम सभी जिव Satlok  से ही आये है।  और इस संसार में आ कर अपने घर को खुद ही भूल गए है।

और एक बात बता दूँ , वाहा न भूख है न नींद है और वाहा निःअक्षर नाम है , निःअक्षर मतलब जो अक्षर से परे है जो अक्षर में लिखा नहीं जा सकता , जो जिव Satlok  पहुंच जाता है उसे फिर इस संसार में आना नहीं पड़ता है और वो जन्म और मरण से मुक्त होकर अपने निज घर को प्राप्त करता है  Satlok  से कबीर साहेब सत्यपुरुष की आज्ञा से इस संसार में  ४ चारो  युगो में आये है जिव को चेताने के लिए ( बताने ) के तुम कौन हो और कहा से आये हो।

सतगुरु कबीर साहेब के चारो युगो का नाम 

Satlok

 

सतयुग में सद्गुरु कबीर साहेब का नाम था , सतसुकृत 

त्रेता में सद्गुरु कबीर साहेब का नाम था , मुनींद्र स्वामी 

द्वापर में सद्गुरु कबीर साहेब का नाम था , करुणामय स्वामी 

और कलयुग में  सद्गुरु कबीर साहेब का नाम था , कबीर 

और सतगुरु कबीर साहेब का नाम Satlok में है  ज्ञानी पुरुष 

 

Satlok  का सोभा का वर्णन 

ऐसा संत सद्गुरुओ ने बताया है  के Satlok  में सत्यपुरुष के शरीर के एक रोम के प्रकाश के सामने करोड़ो चाँद और  सूर्य शर्मा जाये , एक रोम की सोभा ऐसी तो पुरे बदन की वर्णो कैसी , एक रोम कहा जाता है हमारे हाथ पाव में जहा से बाल निकलता है वह एक छोटा छिद्र होता है उसी को रोम कहा जाता है।  सत्यपुरुष ने ही आदिशक्ति माता को बनाया है सत्यपुरुष के ही कृपा से सारी श्रुष्टि हुयी है।

सृष्टि की उत्पति-सत्यपुरुष की रचना 

सत्यपुरुष ने स्वयम इच्छा जाग्रत कर अपने अंशो ( पुत्रो ) को उत्पन्न किये और अपने अंश-पुत्रो को देख कर खुश हुए।  सर्व-प्रथम सत्यपुरुष ने आदि शब्द को प्रकाशित (उच्चरित ) किये और उससे लोक-द्वीप रच कर उसमे निवास किये।

फिर सत्यपुरुष ने चार-पावो के एक सिंहासन की रचना की और उसके ऊपर पुष्प-द्वीप का निर्माण किये। जब सत्यपुरुष अपनी संपूर्ण कलाओ को धारण कर उस पर बैठे तब उनसे अगर-वासना (सुगंध ) प्रगट हुयी।

सत्यपुरुष ने अपनी इच्छा से सब कामना की और उससे अठासी हज़ार द्वीपों को रच दिए। उन सभी द्वीपों में वह चन्दन जैसी सुगंध समां गयी , जो बहुत अच्छी (सुहावनी ) लगी। सत्यपुरुष ने जब दुषरे शब्द को प्रकाशित किये , उससे  (१ अंश ) कूर्म जी प्रगट हुए।  जब सत्यपुरुष ने तीसरे शब्द का उच्चारण किये, तो उससे (२ अंश ) ज्ञान-नाम  के सूत उत्पन्न  हुए ( जो सब सब सुतो में सर , अर्थात  श्रेष्ठ थे ) ज्ञान नाम के सूत सत्यपुरुष के चरणों में प्रणाम कर सामने खड़े हुए , तब सत्यपुरुष ने उनको एक द्वीप में रहने की आज्ञा दी।

सत्यपुरुष ने जब चौथे शब्द का उच्चारण किये तब (३ सूत ) विवेक-नाम के सूत प्रगट हुए।  सत्यपुरुष ने जब पाचवे शब्द उच्चारण किये तब उससे (४ सूत ) काल निरंजन उत्पन्न हुए।  सत्यपुरुष ने जब छठे शब्द का उच्चारण किये तब उससे  (५ सूत ) सहज-नाम के सूत प्रगट हुए।  सातवे शब्द के उच्चारण से  (६ सूत ) संतोष-नाम के सूत उत्पन्न हुए , जिनको सत्यपुरुष ने द्वीप देकर संतुस्ट किये।

सत्यपुरुष ने आठवे शब्द को उच्चारे तो उससे  (७ सूत ) सुरति सुभाव नाम के सूत  हुए , उन्हें भी एक द्वीप में बैठा दिये।  नवे शब्द के उच्चारण से  ( ८ सूत ) अपार आनंद नाम के सूत हुए, तथा दसवे शब्द के अनुसार  (९ सूत ) क्षमा-नाम के सूत उत्पन्न हुए।

सत्यपुरुष के ग्यारहवे शब्द से  (१० सूत ) निष्काम-नाम , और बारहवे शब्द से  (११ सूत ) जलरंगी-नाम के सूत उत्पन्न हुए।  उनके तेरहवे शब्द से  (१२ सूत ) अचिंतनाम के सूत हुए।  सत्यपुरुष के चौदहवे शब्द से  (१३ सूत )  प्रेमसुत नाम का सूत उत्पन्न हुआ

सत्यपुरुष के पन्द्रहवे शब्द से ( १४ सूत ) दीनदयाल-नाम के सूत , और सोलहवे शब्द से  (१ ५ सूत ) धीरज नाम के विशाल सूत उत्पन्न हुए उनके सत्रहवें शब्द-उच्चारण से  (१६ सूत )  संतायन सूत हुए,

एक ही नाल से सत्यपुरुष के शब्द-उच्चारण से  सोलह सुतो की उत्पति हुयी।

क्या  Satlok में स्त्री पुरुष  दोनों है 

Satlok में सिर्फ पुरुष है वोभी किशोर अवश्था में और सदा के लिए किशोर ही रहते है वहाँ स्त्री नहीं है।  सत्यपुरुष ने एक ही स्त्री बनाये , जिनका नाम है , अष्टांगी , (आदशक्ति ) और  उन्होंने ने पूरा संसार बसाया है , सत्यलोक  सात द्वीप नौ खंड से परे है , वो अमर लोक है वहाँ  प्रलय कभी नहीं होता ,

Satlok क्या काल और माया से परे है 

 

हाँ बिलकुल सत्यलोक काल पुरुष और माया से परे है , सत्यलोक में सत्यपुरुष है , और सभी हंस है , सत्यलोक में जो भी जिव आत्मा भक्ति करके पहुंच जाती है वो , हंस स्वरुप को प्राप्त हो जाती है , सत्यलोक में सत्यपुरुष और  सद्गुरु कबीर साहेब जी के कृपा से , सभी हंस ख़ुशी ख़ुशी रहते है

Satlok जाने के लिए क्या करना पड़ेगा 

Satlok जाने के लिए किसी पुरे गुरु से सूरत शब्द योग का उपदेश लेकर अभ्यास करेंगे और अपने उस गुरु की सेवा करेंगे तब गुरु की कृपा से सतलोक को जा पाएंगे ,

सूरत शब्द योग क्या है 

सूरत शब्द योग वह विधि है जो सद्गुरु कबीर साहेब धरम दास  साहेब को दिए और , धरम दस साहेब उस सूरत शब्द योग के साधना से सत्यलोक जाकर देख कर आये , सूरत शब्द योग जो है , इसमें आंतरिक शब्द बताया जाता जो हर मुकाम पर अलग – अलग है, इसमें ध्यान केंद्रित करके  सूरत को  शब्द में लगाया जाता है इसी को सूरत शब्द योग कहा जाता है।

Satlok में क्या खाते है 

सत्यलोक में पांच तत्त्व और तीन गुण का शरीर नहीं है जिसे भूख और प्यास लगे , सत्यलोक में शब्द रूपी शरीर है वहाँ  शब्द और प्रकाश है , वहाँ  के हंसो का भोजन शब्द और प्रकाश है जो लोग बोलते है के वहाँ  बहुत मीठी मीठी फल है हिरे मोती से भरे पहाड़ है वो बिलकुल झूठ बोलते है , उनको खुद पता नहीं सत्यलोक कहा है और कैसा है , सत्यलोक में  ना भूख है ना  नींद है , निःअक्षर नाम है।

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