Kabir Das ka Jivan Parichay | Kabir Das Biography In Hindi

आज इस पोस्ट में Kabir Das ka Jivan Parichay के बारे में जानेंगे और कुछ ऐसे गुण  रहश्य जानेंगे जो की बहुत कम लोगो को पता है, Kabir Das ka Jivan Parichay के बारे में बहुत ही कम लोगों के पास ही सही जानकारी होती है। इस पोस्ट में सभी जानकारी पुस्तक में लिखे हुए आधार पर है। 

Kabir Das ka Jivan Parichay

 

Kabir Das Ji ka Jivan Parichay

 

आज से करीब 600 वर्ष पूर्व करीब 1398 ईसवी में सद्गुरु Kabir साहेब वाराणसी के लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर परगट हुए (उनका जन्म नहीं हुआ वो स्वयम प्रगट हुए ) ज्येश्ठ का महीना था

पूरणमासी का रात थाजब सद्गुरु Kabir साहेब प्रगट हुए तब लहरतारा तलाब पूणतः प्रकाशमय हो गया था जो की कुछ दुरी पर बैठे अस्टाॅनन्द स्वामी ध्यान में बैठे थे जब प्रकाश हुआ तब उनकी आँख खुल गयी और वो लीला उन्होंने स्वयम देखा था

सद्गुरु कबीर साहेब उस कमल के पुष्प पर एक बच्चा का स्वरुप लेकर खेलने लगे जब सुबह निरु अपनी पत्नी नीमा को गौना कराकर लेकर  आ रहे थे तो नीमा जी को प्यास लगी तो वो निरु से बोली की मुझे बहुत प्यास लगी है तो निरु बोले के यही थोड़े दूर पर तलाब है जाओ पानी पी कर आ जाओ नीमा जी पानी पिने चल दी जब तालाब पर पहुंची तो वो किनारे से पानी पी ली और

Kabir Das Jivan Parichay

अब चलने को हुयी तभी उनका नजर कुछ दूर कमल के पुष्प पर पड़ी एक सूंदर सा बालक कमल के पुष्प पर कौतुहल कर रहा था नीमा जी देखि तो उनसे रहा नहीं गया और वो जा कर उस बच्चे को गोद में उठा ली

और इधर उधर देखने लगी के ये किसका बच्चा हैआवाज भी लगाई लेकिन कोई भी नहीं दिखा फिर नीमा जी उस बालक को लेकर निरु के पास पहुंची निरु बच्चे को देख कर बोले ये किसका बच्चा उठा लायी

तो नीमा जी ने सारी बात बता दी फिर निरु बोले के इस बच्चे को ले जाओ जहा से लायी हो वही छोड़ आओ तो नीमा जी बोलने लगी के नहीं कितना प्यारा बच्चा है मै इसे अपने घर ले चलूंगी तो निरु बोले के नहीं अभी मैं तुम्हे गौना कराकर ला रहा हूँ

और बच्चा साथ में लोग देखेंगे तो क्या -क्या लोग बोलेंगे तुमको अंदाज़ा नहीं है इस बात पर रिक- झिक हो रही थी तभी वो बालक बोल पड़ता है मुझे अपने साथ ले चलो मै पहले के किसी कारन से तुम्हारे पास आया हूँ फिर वो लोग अपने घर ले कर चल दिए

Kabir Das Jivan Parichay

Kabir Das Biography in Hindi, बालक कबीर का नाम रखने के लिए काजी का आना

कुछ दिन बाद बच्चे का नाम रखने के लिए काजी को बुलाया गया काजी जब नाम रखने के लिए कुरान देखता है तो उसमे खुदा का ही नाम आ रहा है वो बार-बार देखता है बार-बार वही नाम आ रहा है तो इस बात पर काजी  काफी गुस्से में झिझक कर बोलता है

ये क्या हो रहा है तभी वो बालक बोलता है मेरा नाम Kabir है दूसरा नाम रखने की जरुरत नहीं है काजी अचंभव में पड़ जाता है और वहा से चला जाता है

बालक कबीर जब थोड़ा बड़ा हो जाता है तब वो किसी ना किसी से सत्संग करने लगता है बालक कबीर की बात सुनकर लोग अचंभव में पड़ जाते है उसी में कुछ लोग कह देते तुम ने गुरु नहीं किया है

Kabir

तो इस ज्ञान का कोई मतलब नहीं है इस बात पर बालक कबीर ने सोचा के गुरु बना लेता हूँ और फिर बालक कबीर रामानंद स्वामी के पास जाता है और बोलता है के स्वामी जी मुझे अपना शिष्य बना लीजिये लेकिन उस समय का ऐसा दौर था

के रामानंद स्वामी छोटी जात वलों का मुँह भी नहीं देखते थे तो वो शिष्य कैसे बना लेते वो दूर से ही मना कर दिए बालक Kabir वाहा से वापस आ जाता है एक दिन की बात है रामानंद स्वामी सुबह 5 बजे तालाब पर असनान करने जाते थे तो उस दिन बालक Kabir तालाब के सीढ़ियों पर लेट गया

जब स्वामी जी असनान करने आये तो अँधेरे में बालक कबीर को नहीं देखे और उनके पाँव से बालक कबीर को चोट लग गयी और वो रोने लगा तभी स्वामी जी बोलेन के चुप हो जा बच्चा राम-राम बोलो सब ठीक हो जायेगा बालक Kabir चुप हो गए और राम-राम कहते हुए वहां से चले गए

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अब बालक Kabir किसी से भी सत्संग करता तो वो लोग पूछते के तुम्हारा गुरु कौन है तो वो बोलते के रामानंद स्वामी मेरे गुरु है अब धीरे धीरे ये बात रामानंद स्वामी के पास पंहुचा के एक छोटी जात का बचा है उसका नाम कबीर है वो बोलता है के मेरे गुरु रमानन्द स्वामी है

स्वामी जी जब ये बात सुने तो नाराज़ होते हुए बोले के उस बालक को बुलाओ मै पूछता हूँ के कब मैंने उसको अपना शिष्य बनाया स्वामी जी के आज्ञा से एक शिष्य जाता है और बुला लाता है बालक Kabir को

जब Kabir को स्वामी जी देखते है तो पूछते है के तुम सबसे बोलते फिरते हो के तुम्हारा गुरु मै हूँ मैंने तुम्हे गुरु दीक्षा तो दी नहीं तो तुम मेरे शिष्य कैसे हुए तो बालक कबीर बोलता है गुरु मंत्र क्या है तो स्वामी जी बोले राम नाम तब कबीर बोलते है वही नाम आप मुझे बोलने के लिए बोले थे

तो स्वामी जी बोलते है के मैं कब बोला था Kabir बोलते है के उस दिन जब आप तालाब पर नहाने जा रहे थे तो आपके पाव से मुझे चोट लग गया था तो आप बोले राम नाम बोलो बच्चा

बालक कबीर ने एक अपनी लीला दिखाई

स्वामी जी चौक कर बोलते है वो बच्चा बहुत छोटा था और तुम काफी बड़े दीखते हो तभी बालक कबीर ने एक अपनी लीला दिखाई और वही बालक बन कर स्वामी जी के पाव के पास पड़ कर बोलते है के गुरु जी यही बच्चा था न स्वामी जी कुछ बात समझ जाते है और बोलते है उठ जाओ कबीर ,

और Kabir उठ जाते है अब स्वामी जी कबीर को अपने आश्रम पर रहने आने जाने की अनुमति दे देते है कबीर एक और कला दिखते है स्वामी जी हर दिन रात्रि में ध्यान में बैठते थे उस दिन भी स्वामी जी ध्यान में बैठे तो हर दिन स्वामी जी के ध्यान में ठाकुर जी को देखते थे

और आज ध्यान में बैठे तो ध्यान में कबीर जी को देखे स्वामी जी आंतरिक जानकार थे तो वो सब बात समझ गए फिर उसके बाद से हमेशा स्वामी जी और कबीर में आंतरिक ज्ञान की बातें हमेशा होने लगी

योगी गोरखनाथ का सत्संग के लिए आना

कबीर अपने घर चले गए कुछ दिन के बाद वहाँ योगी गोरखनाथ आते है और बोलते है के मैं आज के सातवे दिन आऊंगा तुम से सत्संग करने अगर तुम हार गए तो मेरी पराधीनता स्वीकार करना पड़ेगा और चले जाते है अब इस बात को लेकर सब चिंतित रहने लगते है उस समय गोरखनाथ का बहुत बोलबाला था

क्यूंकि गोरखनाथ बहुत से आश्रम वालों को पराजित कर चुके थे उनका वास्तविक काम ये था के वो योगसाधना से सिद्धि प्राप्त कीये थे तो वो सत्संग करने के लिए त्रिशूल को जमींन में धसा कर त्रिशूल के नुख पर बैठ जाते और बोलते के मेरे बराबरी में आकर सत्संग करो और कोई कर नहीं पाता

और वो पराजित हो जाता इसी बात से सब चिंतित थे तभी कबीर आश्रम में आते है सबको चिंतित देख चिंता का कारन पूछते है तो उनको ये सारी बात बताई जाती है तब कबीर बोलते है गुरु जी आप चिंता मत कीजिये गोरखनाथ आएंगे तो बोल दीजियेगा के पहले मेरे शिष्य से सत्संग कर लो फिर मुझ से करना स्वामी जी बोले ठीक है

कबीर

गोरखनाथ और कबीर जी का सत्संग

 

अब वो दिन आ गया गोरखनाथ आये और बोले आओ रामानंद सत्संग करो स्वामी जी बोले पहले मेरे शिष्य से सत्संग करो बाद में मुझसे करनातो गोरखनाथ बोले ठीक है गोरखनाथ अपना वही काम किये और त्रिशूल को जमींन में गाड़ कर त्रिशूल के नुख पर बैठ गए

और बोले आ जाओ मेरे बराबरी में और सत्संग करो तो कबीर कुछ ढूंढते है तो उन्हें एक सुतली की गठा दीखता है कबीर उस सुतली को पकड़ कर आसमान के तरफ फेक देते है और वो सुतली आकाश में जा कर रुक जाता है

कबीर उस सुतली को पकड़ कर आसमान में जा कर बैठ जाते है और बोलते है गोरखनाथ आ जाओ और सत्संग करो अब गोरखनाथ काहेको वह रुके वो अपना त्रिशूल उखाड़ कर भाग चले आगे जानेंगे सद्गुरु कबीर साहेब के ईश्वर कौन थे अब आगे की जो भी बात है वो दूसरे भाग में बताऊंगा साहेब बंदगी 

 

 

 

Kabir Das Ji Bhajan 1

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