Kabir Ji Ki Aarti | कबीर ज्ञानस्तोत्र 1 Amazing

सत्यनाम

सभी को साहेब बंदगी , इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से मै Kabir Ji Ki Aarti  कबीर ज्ञानस्तोत्र  प्रस्तुत कर रहा हूँ आशा  करता हूँ आप सभी को पसंद आएगा साहेब बंदगी

Kabir Ji Ki Aarti

Kabir Ji Ki Aarti संध्या साखी 

गुरु को कीजै वन्दगी, कोटि-कोटि प्रणाम ।

कीट न जाने भृंग को, गुरु कर ले आप समान ।।

गुरु मूरति गति चन्द्रमा, सेवक नयन चकोर ।

अष्ट प्रहर निरखत रहो, गुरु मूरति की ओर ।।

निर्विकार निर्भय तुही, और सकल भय मांहि ।

सब पर तेरी साहबी, तुम पर साहिब नांहि ।।

सन्ध्या सुमिरण आरती, भजन भरोसे दास ।

मनसा वाचा कर्मणा, जब लग घट में श्वास ।।

श्वास- श्वास में नाम ले, वृथा श्वास मति खोय ।

ना जाने यह श्वास को, आवन होय न होय ।।

श्वासा की कर सुमिरणी, कर अजपा को जाप ।

परम तत्त्व को ध्यान धर, सोऽहं आपहि आप।।

सोऽहं पोया पवन में, बांधो सुरत सुमेर ।

ब्रह्म गांठ हृदय धरो, इस विधि माला फेर ।।

माला श्वासोच्छवास की, फेरेंगे कोई दास ।

चौरासी भरमें नहीं, कटे काल की फाँस ।।

सांझ परे दिन आथवे, चकवी दीन्हा रोय ।

चल चकवा तहाँ जाइये, जहाँ रैन दिवस नहिं होय ।।

रैन की बिछुरी चाकवी, आनि मिली परभात ।

जो जन बिछुरे नाम सों, दिवस मिले नहिं रात ।।

सतगुरु मोहि निवाजिया, दीन्हा अमर मूल ।

शीतल शब्द कबीर का, हंसा करे किलोल ।।

हंसा तुम जनि डरपिहो, कर मेरी परतीत ।

अमर लोक पहुँचायहौं, चलो सो भवजल जीत ।।

भवजल में बहु काग हैं, कोइ कोइ हंस हमार।

कहहिं कबीर धर्मदास सों, खेव उतारो पार ।।

बिनवत हूँ कर जोरि के, सुन गुरु कृपानिधान ।

संतन को सुख दीजिये, दया गरीबी ज्ञान ।।

दया गरीबी बन्दगी, समता शील करार ।

इतने लक्षण साधु के, कहहिं कबीर विचार ।।

धनी ऊपर धर्मदास है, सत्यनाम की टेक ।

रहिता पुरुष कबीर हैं, चलता है सब भेष ।।

भेष बराबर हो रहे, भेद बराबर नाहिं ।

तौल बराबर घूँघची, मोल बराबर नांहि ।।

केवल नाम केवल गुरु, बाला पीर कबीर ।

ठाढ़े हंस विनती करें, दर्शन देहु कबीर ।।

आनन्द मंगल आरती, सतगुरु सत्यकबीर ।

यम के फंदा काटि के, हंस लगावें तीर।।

आरती गरीब निवाज साहेब आरती हो 

आरती गरीब निवाज साहेब आरती हे ,
                                           आरती दीन दयाल साहेब आरती हे।।
ज्ञान आधार विवेक के बाती,
                                        सुरती ज्योति प्रकाश।।
आरती करूँ सतगुरु साहेब की , 
                                                जहाँ सब संत समाज।।
दरश परस मन बहुत आनंद भये  ,
                                                    भयो प्रेम प्रकाश।।
धर्मदास सतगुरु कृपा से ,
                                       छूटी गायों यम जाल , साहेब आरती हे।।

Kabir Ji Ki Aarti

आरती

ज्ञान आरती अमृत बाणी, पूरण ब्रह्म लेहु पहिचानी।

जाके हुकुम पवन औ पानी, वाकी गति कोई बिरले जानि ।।

त्रिदेवा मिलि जोत बखानी, निराकार की अकथ कहानी ।

यही आशा सब हिल मिल ठानी, भर्मि भ िभटके नर प्राणी ।।

दृष्टि बिना दुनिया बौरानी, साहब छाँड़ि जम हाथ बिकानी ।

सकल सृष्टि हमही उतपानी, शील संतोष दया की खानी ।।

सुख सागर में करो स्नाना, निर्भय पावो पद निरवाना।

कहहिं कबीर सोइ संत सुजाना, जिन-जिन शब्द हमारो माना ।।

Kabir Ji Ki Aarti ज्ञानस्तोत्र

कबीर ज्ञानस्तोत्र

कबीर :- सत् सत् के नाम से, सत्य सागर भरा, सत्य का

नाम तिहुँ लोक छाजा संतजन आरती

करें, प्रेम तारी धरें, ढोल नीसान मृदंग बाजा ।।

भक्ति सांचीं किया नाम निश्चय लिया, शून्य के

शिखर ब्रह्मांड गाजा, सत्य कबीर सर्वज्ञ साहेब

मिले, भजो सत्यनाम क्या रंक राजा ।

हम दीन दुनी दरवेशा, हम किया सकल परवेशा ।

हम दुवा सलामत लेखा, हम शब्द स्वरूपी पेखा।।

हम रुण्ड मुण्ड में फीरा, हम फाका, फिकर फकीरा ।

हम रमे कौन की नाल, हम चले कौन की चाल ।।

Kabir Ji Ki Aarti

हम सर्वगी सहजे रमे हमारा वार पार ।

वार भी हम हीं पार भी हम हीं, नाना दरिया तीर ।।

सकल निरन्तर हम रमे, हम गहरे गंभीर ।

धर्मदास लोके गये, छोड़ि सकल संसार ।

खालिक खलक खलक के माहीं, यौं गुरु कहहिं कबीर ।।

सत्यनाम की आरती, निर्मल भया शरीर ।

धर्मदास लोके गये, गुरु बहियां मिले कबीर ।।

हंसन पार उतारहीं, गुरु धर्मदास परिवार ।।

सत्य सुकृत लौलीन हैं, ज्ञान ध्यान स्थीर ।

अजावन वह पुरुष हैं, सो गहि लागो तीर ।।

Kabir Ji Ki Aarti

सत्त सत्त का भया प्रकाशा, जरा मरण की छूटी आशा ।

शब्द न विनसे विनसे देही, कहहिं कबीर हम शब्द सनेही ।।

पांच तत्त्व तीन गुन पेले, रमिता रहे शब्द सो खेले ।

कह कबीर सो हंस हमारा, बहुरि न देखे यम का द्वारा ।।

रहु रे काल पराधिया, दुर्बल तोर शरीर ।

सत्त सुकृत की नाव है, खेवे सत्य कबीर ।।

भव भंजन दुःख परिहरन, अम्मर करन शरीर ।

आदि युगादि आप हो, गुरु चारों युग कबीर ।।

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