Kabir Saheb Ke Bhajan | कबीर भजन लिरिक्स | कबीर भजन 2023

आज इस पोस्ट में Kabir Saheb Ke Bhajan  लिख रहा हूँ।  Kabir Saheb Ke Bhajan  बहुत ही ज्ञान बर्धक होते है , जिसे सुनने और विचार करने से बहुत सी दुविधा मिट जाया कराती है।  सभी भक्त प्रेमियों और पूरा सकल समाज को साहेब बंदगी।

” Kabir Saheb Ke Bhajan “

 

Kabir Saheb Ke Bhajan

 

” Kabir Saheb Ke Bhajan प्रारम्भ “

सतनाम सुमर प्यारे क्या क्क्त जा रहा है।

मानुष शरीर पाके मुफ्त क्यों गवाँ रहा है? ॥

सुर दुर्लभ तन पायकै, तनक न करत विचार।

फिर अवसर अनमोल यह, मिले न दूजी बार॥

जिसको तू कौडियों के भाव से लुटा रहा है।  सतनाम सुमर प्यारे……..

एक स्वास जो जात है, फिर वह आवत नाहि ।

सोया तू निःशङ्क होय, कौन भरोसे माहिं ॥ ,

शिर-पर तेरे यमराज नगारा बजा रहा है ॥ सतनाम सुमर प्यारे ……

 प्रीति करत परिवार सब, निज स्वारथ के हेत ।

अन्त समय परलोक में, कोऊ साथ नहिं देत ॥

जिनके लिये दिनरात मुसीबत उठा रहा है ॥      सतनाम सुमर प्यारे क्या वक्त जा…..

बहु विधि करि अपराध जिन, तक्यो बिराना माल ।

नर्कवास में हो रहा, तिनका कौन हवाल ||

दुशमन भी जिन्हें देखके आँसू बहा रहाहै ॥    सतनाम सुमर प्यारे क्या वक्त जारहा है

 संगति कर कोऊ साधुकी, नहिं धोवे उर मैल

कहें कबीर भटकत फिरे, ज्यों तेली का  बैल ॥

मेरी कही तो बात हवामें उडा रहा है ॥   सतनाम सुमर प्यारे क्या वक्त जा रहा है….

Kabir Saheb Ke Bhajan

 

” Kabir Saheb Ke Bhajan प्रभुके चरण में ध्यान लगाया करो कभी “

प्रभुके चरण में ध्यान लगाया करो कभी ।

परलोक में अपना कुछ तो बनाया करो कभी॥

आठों पहर परपंच में जाते हैं तुम्हारे ।

एक पल तो गुण गुरू का भी गाया करो कभी ।।

आखिर को ये संसार छूट जायेगा तुमसे ।

तुम भी तो इस को दिल से हटाया करो कभी ||

लै लै किया है तुमने जमा धन को जोड के ।

देने को भी कुछ हाथ उठाया करो कभी ॥

जब-तक हृदय में बन सके तब तक जरा दया ।

दुखियों के तरफ देख के लाया करो कभी ॥

तृष्णा तो कर रही है प्रबलता से अपना राज ।

सन्तोष को भी ठौर दिलाया करो कभी ॥

माया के वश में पड़ के जो रहता है दिवाना ।

इस मन को अपने ज्ञान दृढाया करो कभी ॥

स्वारथ के लिये तो सदा फिरते हो ।

सन्तों के भी सतसंग में जाया करो कभी

है हित का तुम्हारे ही ये कहना कबीर का इस को न अपने दिल से भुलाया करो कभी

 

” Kabir Saheb Ke Bhajan समय बुढापे का फिर कठिन है “

पडे अविद्या में सोने वालो, खुलेंगी आँखें

तुम्हारी कब तक शरण में आने को सद्गुरू की,

॥ करोगे अपनी तयारी कबतक

गया न बचपन वो खेल बिन है,

!! चढी जवानी ये चार दिन है।

समय बुढापे का फिर कठिन है,

॥ रहोगे ऐसे अनारी कबतक ॥

अजब अटारी औ चित्रसारी,

॥ मिली मनोहर है तुमको नारी ।

बढी है दौलत की जो खुमारी,

रहेगी ऐसी ही जारी कबतक |

जो यज्ञ आदिक है कर्म नाना,

फल है इन्होंका सुख स्वर्ग पाना ।

मिटे न इनसे भव आना जाना,

सहोगे संकट ये भारी कब तक ॥

कबीर तो कहते हैं पुकारी,

मगर तुम्हीं को है अखतियारी ॥

सुनो अगर ना सुनो हमारी,

बनोगे सच्चे विचारी कबतक ॥

आतम त्यागि पषाणहिं पूजे, धरि दुलहा दुलही ।

किरतम आगे करतानाचै, है अन्धेर यही ॥

शुपको मारि यज्ञमें होमैं, निजस्वारथ अबहीं ।

इकदिन तुमसे आय अचानक, बदलालेय सही ॥

पाप कर्म करि सुखको चाहे, यह कैसे निवही ।

पार उतरना चहे सिन्धुके, स्वानकी पूंछ गही ॥

कहैं कबीर कहूँ मैं को कुछ, मानो हवा बही ।

कोई न सुने कही जग मेरी, कहि हान्यो सबही ॥

 

 “Kabir Saheb Ke Bhajan चेतावनी- भजन “

 

कब भजिहो सतनाम ॥

सो मेरे मन ! कब भजिहो सतनाम ॥

बालापन सब खेलि गमायो ज्वानी में व्याप्यो काम।  कब भजिहो सतनाम,…….

वृद्ध भये तन काँपन लागे लटकन लाग्यो चाम ॥

लाठी टेकि चलत मारगमें सह्यो जात नहिं घाम।  कब भजिहो सतनाम, ……

कानन बहिर नयन नहिं सूझे दाँत भये बेकाम ॥

घरकी नारि विमुख होय बैठी, पुत्र करत बदनाम ।  कब भजिहो सतनाम, …..

बरबरात विरथा बूढा, अटपट आठो जाम

खटिया से भुइपर करि देहें, छुटि जैहैं धन धाम ।

कहें कबीर काह तब करिहो, परिहै यम से काम।  कब भजिहो सतनाम,…….

 

 “Kabir Saheb Ke Bhajan उपदेश “

 

तजि सकल तदबीर एक कबीरको घ्याया करो।

होके दीन अधीन सन्तों के निकट आया करो ॥

फूल फल परसाद थोडा बहुत बहुत श्रद्धा के सहित ।

बनसके जो कुछ, सो उनकी भेंटको लाया करो ॥

धरके सन्मुख उनके, अपने हाथ दोनों जोड़कर।

अदत से अभिमान तजि, चरणों में शिर नाया करो |

सुनि के उपदेशों को उनके, मनन कर फिर बार बार।

निस ध्यान  करके उसको, काम में लाया करो |

बारम्बार  कर याद वह, धर्मदास उठते बैठते ।

सत्य साहिब, सत्य साहिब, कहके गुण गाया करो

 जगत् जिसका ये कुल बनाया हुआ है ।

की वही सब घटों में समाया हुआ है॥

नहीं दूसरा कोई है उससे न्यारा ।

ओ अपने में आपी भुलाया हुआ है ॥

हर-एक रूप है  वो रंग विरंगी।

ये जलवा उसीका दिखाया हुआ है।

उसी की समझ  में, ये आती हैं बातें।

शरण सद्गुरु की जो आया हुआ है।

ताकत उसी में ही मुँह  खोलने की ।

जो कुछ भेद सन्तों से पाया हुआ है ।

धरमदास अपनी, उसी की फि कर में।

शम करोडों की दौलत, लुटाया हुआ है ॥

Kabir Saheb Ke Bhajan

 “Kabir Saheb Ke Bhajan कबीर साहबकी विशेषता “

धन् कबीर  ! कुछ ऐसा जलवा, दिखाना हो तो ऐसा हो’

बिना मा बाप के दुनियाँ में, आना हो तो ऐसा हो ॥

उत्तर आसमान  से एक नूर का, गोला कमल दल पर।

वो आके बन गये छोटा  बालक, बहाना हो तो ऐसा हो ॥

कहूँ क्या ढंग गंगा के, किनारे शिष्य होने का ।

जो रामानन्द स्वामी को, भुलाना हो तो ऐसा हो ॥

छुडा कर ढोंग दुनिया का, सत्य उपदेश देते थे ।

सरे मैदान गर डंका बजाना हो तो ऐसा हो ॥ ,

बहस करने को पण्डित मोलवी सब पास में आये ।

भये सरमिन्दे आपी खुद, हराना हो तो ऐसा हो ॥

सुनाके ज्ञान निरबानी, किया दोऊ दीन को चेला।

अगर संसार में सतगुरु, कहाना हो तो ऐसा हो ॥

हजारों बैल भरके धान, केशव भेट को लाया ।

रखा नहिं एक दाना-गर, लुटाना हो तो ऐसा हो ॥

किया सद्धर्म्म का परचार, पहले पहल काशी में।

बिना भक्ती के मुक्ती का, ठिकाना हो तो ऐसा हो ॥

छोड़ कर फूल और तुलसी, गये सादेह निज घरको ।

परम अवतार इस जग से, जाना  हो तो ऐसा हो ॥

बचाया हिंसकों के हाथ से हिन्दू धरम साबित ।

कहें धर्मदास गहरी जड़ , जमाना हो तो ऐसाहो ॥

 

 “Kabir Saheb Ke Bhajan कबीर जी  का प्रगट होना “

 

 कृपा करने को भक्तों पर, प्रभू सतलोक से आये ।

कमलदल पर प्रकट काशी में हो कबीर  कहाये ॥

बनाके वेष साधूका लगे फिरने घरों घर में ।

कहें हम से करो चरचा, ये सुन विद्वान घबराये ॥

चली नहिं और कुछ युक्ती, तौ सब पंडित लगे कहने।

बतावो ये हमें पहले, कि दीक्षा किस से तुम लाये।

न हरगिज ज्ञान दुनिया में, कभी परमान होता है।

बिना कोई गुरू के पास, जाकर कान फुंकवाये ॥

ये सुन कौतुक किया ऐसा, धर्यो लघु  रूप बालक का ।

जाय गंगा किनारे घाट पर सोये थे शिर-नाये |

नहाने के समय जाने में, रामानन्द स्वामी की ।

खड़ाऊँ आ-लगी शिरमें तो दैया ! कहके चिल्लाये ॥

दयालु सन्त थे स्वामी, उठा कर गोद में बोले ।

भजो श्रीराम मति रोवो मिटे दुख हरिका गुण-गाये॥

करी ऐसी कई लीला, कहाँ तक कह सके कोई ।

मुक्ति धर्म्मदास है जगमें उन्हीं की शरण में जाये

” Kabir Saheb Ke Bhajan चेतावनी खेमटा “

धोवाल सखी चुंदरी माइल बा तोहार।।

निर्मल चुंदरी ख़राब कर दिहलू।

       का लेके जाइबू पिया के दरबार।।

खेल कूद में बच्चपन बीतल।

      भइलू जवान कर मन में विचार।।

गौना के दिनवा तोहार नियरइले।

       पिया लेके अइहे डोलिया कहर।।

धर्मदास सतगुरु हई धोबी।

       धोदिहे चुंदरी हो जाई उबार।।

“Kabir Saheb Ke Bhajan भजन चेतावनी” 

 साधु संग भाई कर सत्संग।।

साधु संगत से पाप कटत है ,

 ज्ञान ध्यान बुद्धि पाई।।

 तजि प्रपंच अमीरस चाखे ,

 शब्द के रंग चढ़ाई।।

कागा से  गुरु हंस बनाये ,

 हरी के नाम लखाई।।

युक्त मुक्त के डगर बतावे ,

अमर लोक लेजाई।।

जन्म मरण से न्यारा रहिये ,

अजर अमर घर पाई।।

कबहुँ न आइब गर्भ-वास में ,

 आवागमन छूट जाई।।

साधु हमारे मात-पिता है ,

 साधु है गुरु भाई।।

धर्मदास सतगुरु के भरोसा ,

भक्ति अचल पद पाई।।

” Kabir Saheb Ke Bhajan निर्गुण – पूर्वी झूमर “

आठो अंग मोरी के सम्हारि के चल डगरिया ए सुहागिन सुन।

ठहर-ठहर बैठल चोर ए सुहागिन सुन।।

लपटी-झपटी के तोहार छीनी हे गहनवा ए सुहागिन सुन।

उतार लिहे सुरती तोहार ए सुहागिन सुन।।

केतनो चिल्लाइबू ओहिजा होइहे न गोहरवा ए  सुहागिन सुन।

डाली दिहे गले जम्हू-फास ए सुहागिन सुन।।

जेतने कमइलु ओतना करना जतनवा ए सुहागिन सुन।

ओहिजा नइखे पाईचा उधार ए सुहागिन सुन।।

धर्मदास गावे पूर्वी में झुमरवा ए सुहागिन सुन।

धनि गुरु राउरे दरबार ए सुहागिन सुन।।

“Kabir Saheb Ke Bhajan, To Be Continue..”

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