बावन जंजीरा। कबीर जंजीरा मंत्र। Kabir Janjira Mantra| 1 Magic

सत्यनाम

कबीर साहेब के बावन जंजीरा कसनी।

 

सभी को नमस्कार आज इस ब्लॉग में कबीर साहेब के बावन जंजीरा कसनी और बावन जंजीरा मंत्र सिद्ध करने की बिधि और बावन जंजीरा मंत्र बताया जायेगा।

बावन जंजीरा
बावन जंजीरा

 

 

सत्सुकृत आदि अदली अजर अमर अचिंत पुरुष मुनीन्द्र करुणामय कबीर सुरतियोग संतायन चार गुरु धनी धर्मदास वंश बयालिस की दया

सद्गुरु कबीर साहेब के बावन जंजीरा कसनी Life Changing मंत्र है इतने प्रभाव शाली है के सही से सिद्ध कर लिया जाये तो अद्भुत चमत्कार देखने को मिल सकता है

 

बावन जंजीरा

 

  ||  ध्यान का जंजीरा..||

 

रुँ रुँ रीं क्रीं प्रकाश सत्य सुकृत के नाम का कंजे ध्यान।

साखी मृत देह भासे नहीं, अग्नि जरे नहीं पाँय साहेब ध्यान प्रथम तं तं तं जंजीरा सो कराय।।

                                                                  (1)

 

|| बज बाँधने का जंजीरा ।।

सत सुकृत की फिरि दुहाई, सुनत शब्द सबकाल पराई ।।

जो कोई चाहे जीव सतावन योग जीत तेहिं करहिं नशावन ।।

कोटि वज्र प्रहारे जो कोई रोम न टूटे पानी होय जाई ।।

(2)

 

।। बाचा बाँधने का जंजीरा ।।

आदि अदली एक युक्ति विचारा , शब्द संधान बान एक मारा।।

मारि काल कीन्ह पिसमाना, जीवन जाय शब्द प्रमाना ।।

                                                                            (3)

 

।। विषधर बाँधने का जंजीरा ।।

अचिंत नाम किया बल जोरा मारा शब्द काल घनघोरा ।।

साखी विषधर विष व्यापे नहिं, डकरा माहुर दुर जाय ।।

सत्यनाम प्रतापते, कोई भय नहिं पाय ।।.

                                                                             (4)

 

।। बावन जंजीरा ।।जादू टोना बाँधने का जंजीरा ।।

अदली नाम किया संचारा, कलि में शब्द किया उच्चारा।।

जहाँ लगि गुण त्रिगुण के होई, शब्द प्रताप न व्यापे सोई।।

जादू टोना मरी मसान, दूरि जाय शब्द प्रमान ।।

(5)

 

।।काल बाँधने का जंजीरा ।।

निरालंब है शब्द गुंजारा , जाते डरे काल बरियारा ।।

निरालंब ते भया उच्चारा, शब्द ते मारों काल बरियारा ।।

यह भेद कोई बिरले जाना, सुनु बंकेज शब्द  प्रमाना ।।

                                                                          (6)

 

।। खाँड बाँधने का जंजीरा ।।

मुनीन्द्र पुरुष एक किया विचारा, जीव दया लगि शब्द पुकारा ।।

जो कोई व्याधि खाँड चलावे , शब्द प्रताप काटि नहिं जावे ।।

करुणामय कहि धरो ध्याना, भंग देह नहिं शब्द प्रमाना ।।

                                                                              (7)

 

बावन जंजीरा

।। नटकला बाँधने का जंजीरा ।।

करुणामय निज शब्द प्रकाशा, जरा मरन की छूटी आशा ।।

कोटिन कला करे जो कोई, शब्द प्रताप सकल दुरि जाई ।।

जो करि कला सतावन चाहै, गूनवान सकलो जब दाहै ।।

                                                                            (8)

 

इस बावन जंजीरा मंत्र को सिद्ध करके बहुत सारे रोगो से निजात दिलाया जा सकता है। अगले पोस्ट में तरह-तरह बीमारी के लिए अलग-अलग मंत्र बताऊंगा

।। बावन जंजीरा अनेक हथियार बाँधने का जंजीरा ।।

साखी-आदि नाम चित चेति के, धरो निरंतर ध्यान ।।

काल कला व्यापे नहीं, सत सतगुरु के ध्यान।।

तोपक तीर तलवार और अनेक हथियार ।।

हाथी घोड़ा बाघ सिंह, कोई न नियरे ठहराय ।।

 

  (9)

 

।। बैरी दूर करने का जंजीरा।।

शब्द सोहंगम धरिये ध्याना, जाके सुमिरे पद निर्वाना।।

सखी-आदि नाम चित चेती के , शंका भय मिट जाय।।

जो चढ़ि आवे बैर करे ,शब्द प्रताप दूर जाय।।

                                                                           (10)

 

।। वीर बंधन का जंजीरा ।।

मानिक थम्भ चौपारा, शब्द बिहंगम करे पुकारा ।।

निर्भय नाम गुरु के ध्यान, सकल काल होय भयमान ।।

रं रं रं शब्द होय गुञ्जारा, मारो महावीर अपारा, सत्य नाम प्रतापते । ।

(11)

 

।। बून्द बाँधने का जंजीरा ।।

शब्द सुरंगी भेद अपारा, क्या जाने कोई संसारा ।।

बिरला साधु कोई पैहैं भेदा, सो विकार को करि हैं उच्छेदा।।

क्रिं क्रिं क्रिं गुरु मुख शब्द फिरै चौधारा , बून्दन व्यापे एको धारा।।

(12)

।।बावन जंजीरा गाढ़ संकट मोचन का जंजीरा ।।

अखंडित शब्द अखंडित मान , सत्य हृदय में धरिये ध्यान । ।

जब जब पड़े संत पर गाढ़ा, सत्य नाम सिर ऊपर ठाढ़ा । ।

गुरु का ध्यान हृदय जब बाढ़े, अलख पुरुष दाहिनै दिसि ठाढ़े।।

(13)

।। काल भर्म दूर करने का जंजीरा ।।

गुरु महिमा कित करों बखान, सुनु बंकेज शब्द प्रमान ।।

एके शब्द सकल भ्रम काटे , ताहि से कलिकाल न लागे ।।

जो कोई झं झं झं मन लावे, गुरु प्रताप सकल दुरि जावे ।।

(14)

।। जगत कारज का जंजीरा ।।

गुरु ध्यान सम और न ध्याना, ता कहँ कोई न चेतै आना।।

जब हम किया जग काज पयाना, सार शब्द तब बान सँधाना ।।

राय बंकेज तोहि कहि समुझावों, सकल भेद मैं तोहि सुनावों ।।

अक्षर भेद गहि के लीजै , क्रिं क्रिं क्रिं कं कं उच्चारण कीजै ।।

(15)

 

।। व्याधि हरन का जंजीरा ।।

साखी-सत गुरु रूप निरखि के ,अन्तर धरिये ध्यान ।।

कोटि व्याधि दुरि जात है, एक नाम परमान ।।

सुनु हो राय बंकेज यह गुन, जाको काल न जान।।

येहि बान ते काल हन् हन् हन् दुष्ट हन् येहि अक्षर प्रमान ।।

(16)

 

।।बान बाँधने का जंजीरा ।।

बान बंकेज यह शेषतकी, सिकन्दर के पीर ।।

सुनि कै नाम हमार यह, धरिन सके मन धीर ।।

मैं तब प्रगटें वाहि ढिग, यह मैं आया कबीर ।।

तब वह तेगा पकरि के, मारा बार अनेक ।।

मेरे देह व्यापे नहीं, वाको एको तेग ।।

सोई भेद तोसो कहों, लह लहं गुन येह ।।

(17)

 

।। बावन जंजीरा ।। अनेकन बंदी मोचन का जंजीरा।।

बार कई पकड़ी के, आए न वाके हाथ।।

कछु नहिं जानै कहे, जादूगर है जान ।।

सुन बंकेज, अक्षर में है भेद, सो सब कहीं तोहिं उच्छेद ।।

अजपा दृढ़ प्रथमहिं करे, दूजे ध्यान त्रिकुटी में धरे , सं सं सं उच्चारण करे ।।

(18)

 

।। निरालंब रूप धारने का जंजीरा । ।

यह काया सत्गुरु को आहीं, अपने चित में राखो चाहीं ।।

चाह धरे औ ज्ञान को बूझे, निरालंब तब बाको सूझे ।।

राय बंकेज तोहिं भेद बतावों, तुम्हरे मन का शंक मिटावों ।।

हं हं हं हूँ हूँ ।।

(19)

 

।। अन्तर्ध्यान होने का जंजीरा ।।

शब्द विश्वास चित में बाढ़ा , दहिने आय धनी भौ ठाढ़ा ।।

अन्तर गति में ध्यान औराधा , दूर भये सकलो जो बाधा ।।

गं गं गं अक्षर होत झनकारा,  दूर दूरन्तर सकल विकारा।।

(20)

 

।। बावन जंजीरा अजीत ज्ञान का जंजीरा ।।

अलख नाम चित चेतन करे,  दूजे ध्यान गुरु का धरे ।।

अल्ल अल्ल अल्लाह अमने अमाना,  ताको जीति न सके बलवाना।।

राय बंकेज मैं तोहि लखावों,  अक्षर अक्षर के भेद बतावों ।।

(21)

 

।। मन अस्थिर का जंजीरा ।।

अम्बर अम्बर कहि के लीजै,  मनसा चित एक ठाहर कीजै ।।

बेवेअं कहन गहन गुरु गम समतूल,  एकचित एकदिल करनिर्मूल ।।

कहैं कबीर बंकेज बुझाई, येहि शब्द कोई जीत न जाई।।

(22)

 

।। गर्वज्ञान मोचन का जंजीरा ।। 

जो कोई गर्वी गर्व करि आवै ,  गुरु प्रताप जीत नहिं जावै।।

एक अक्षर जो चित में लावै, अक्षर भेद सो तुरतहिं पावै।।

कहैं कबीर बंकेज बुझाई, शब्द प्रताप सब दूर पराई ।।

(23)

 

।।मन विरति धारणे का जंजीरा।।

मनसा मारि चित ठहर कीजै,  ज्ञान अक्षर को ध्यान धाम दीजै ।।

बीजमंत्र कोई बिरला जानी,  कोई कोई एक है गुरु ज्ञानी ।।

अक्षर गति को भेद अपारा,  छं छं छं शब्द बंकेज उच्चारा ।।

(24)

 

।। अग्नि तेज की शीतल करने का जंजीरा ।।

शम्भो शम्भो करी पुकारा,  तीनों शब्द करे गुञ्जारा ।।

पानी दम करि गिरदा करै, जहाँ प्रगट बाहर न परे ।।

कहैं कबीर बंकेज बुझाई, अग्नि तेज शीतल हो जाई ।।

(25)

।। अग्नि शान्ति करने का जंजीरा ।।

साखी – अग्नि जलै अग्नि पैझालै, अग्नि छोड़े स्थान ।।

मान सरोवर विमल जल, सत्य पुरुष करें स्नान ।।

सत मुनीन्द्र प्रताप यह शरीर न वेधे आग ।।

गुरु प्रताप है जांहि पर, वाको है बड़ भाग ।।

(26)

 

।। आसन बाँधने का जंजीरा ।।

साखी आसन दृढ़ करि साधो, हंसजन बैठे आय ।।

ताको काल पीठ दै, कबहुँ न सन्मुख ठहराय ।।

रं रं रं लै हिये धरे, खौहे आपु में आपु समाय ।।

कहैं कबीर बंकेज से, कोई चापि नहिं जाय ।।

(27)

 

।। अनुभव रूप धारने का जंजीरा ।।

साखी अनभी अक्षर बंकेज सुनु, क्रियामान जो होय ।।

तब कोई काल औ व्याल जग, ताको व्यापे न कोय।।

डं डं डं सात बार लै, निशि बांसर कीन्हे होय ।।

(28)

 

।। सर्ववशीकरण जंजीरा।।

सर्व सरूपे सर्वसे, शक्ति-शक्ति नमस्तुते।।

व्याधि हरण करज करण, असुर क्षयके हेतु ।।

(29)

।। बावन जंजीरा श्वेत सरूप धारने का जंजीरा ।।

साखी-श्वेत वरन पुरुष को, निशि दिन धरिये ध्यान ।।

जब लग दरशे रूप यह, षष्ट मास परमान ।।

आसन करे एकान्त होय, सिद्ध कारज करि जान।।

मोहिं सरीखे होय रहे, ताको कुछ न व्याप ।।

(30)

 

।। अटल आसन का जंजीरा ।।

शब्द निरूपे धरि धरि ध्यान, सुनु बंकेज शब्द परमान ।।

चाहे रहे अजपा दृढ़ करे, अपने चाहै अपने मरै ।।

जब लौ चाहे बैठा रहै।।

(31)

 

।। अथाह लीला का जंजीरा ।।

सुनु बंकेज शब्द चित लाय, जाकी थाह काल नहि पाय ।।

शब्द सुरंगी भेद अपारा, क्या जाने कोई संसारा ।।

अजरमनी को तेज अपारा, जो कुछ करै सौ लागु न बारा ।।

(32)

 

कबीर साहेब जी के बावन जंजीरा मंत्र बहुत ही प्रभाव शाली है इन मंत्रो को बहुत सारे संत महात्मा सिद्ध किये है जो बताते है के ये मंत्र बहुत ही कारगर है

 

।। जल प्रवाह विरक्त का जंजीरा ।।

अर्थात्

।।बहते हुए जल की धारा से निकलने का जंजीरा ।।

जब शेखतकी ने कसनी किया, शब्द अंक तबही चित दिया ।।

जल पर बाँधि (प्रवाह) मोहिं दिया डार, शब्द प्रताप किनारे ठाढ़ ।।

तकी देखि के अचरज हुआ, जादू प्रताप जुलहा नहिं मुआ ।।

(33)

 

।। अग्निदाह पीने का जंजीरा ।।

अबकी ले अग्नि में डारों , यहि जोलहा को जारि के मारों ।।

अग्नि माँहिं जब दिया डारी , तब मैं सजीवन नाम उच्चारी ।।

पुरुष को ध्यान अपने चित दिया, अगिदाह हम मुख सो पिया।।

(34)

।। बावन जंजीरा” जादू काटने का जंजीरा ।।

छं छं छं शब्द कहै बार इक्कीस , ताको लगे न एको कलेश।।

साखी-कहैं कबीर बंकेज सो, सुनो चित दे कान ||

तब प्रचार जादू किया, मोकहूँ दिया गिराय ।।

तब मैं चेति शब्द गही, बान को दिया कटाय ।।

जल के जोगिन पाताल के नाग, उलटिबन ताहिं को लाग।।

जहां भेजो तहां जाया, बस्ती नगर को छोड़ कर ले आये।।

भूत प्रेत बैताल पिचास, डाकिन सब्स्क्राइब बोध ले लाय।।

(35)

 

।। अगनित शब्द बान का जंजीरा ।।

मानिकपुरी मन मो रही,  ताको भेद तेहि सो कही ।।

अगनित भेद तोहिं दिया बताई, राय बंकेज सतपुरुष दोहाई ।।

पानीदम करि चाउर साटे, तबहूँ वाके नाम जो राटे ।।

रुरुं रुं रं रं रं बार चालीस दे चाउर इक्कीस स्वाहा स्वाहा।।

(36)

 

।। बावन जंजीरा भर्म निवारण का जंजीरा ।।

मान सरोवर विमल उच्चार,  त्रिवेणी को धरिये ध्यान ।।

जासो पावे पद निर्वाण , चं चं चं चतुर्भुज एक जंजीरा पाया ।।

जासो सबको भरम मिटाया।

(37)

 

।। नागवान मूर्च्छित का जंजीरा ।।

साखी -आदि नाम चित चेति के, लीजे गुरु को नाम ।।

चेत चेत चेते बिना, किमि पावे विश्राम ।।

टं टं टं टी टी टी काल न ताहि सो, सोई अक्षर मैं तोहिसो।।

कह दिया भेद लखाय ।।

(38)

 

।।बावन जंजीरा’ सर्प डंक निवारण का जंजीरा ।।

बंका शब्द बंका का ख्याल , मारों शब्द व्याल को व्याल ।।

नाग सर नाग उत्पान , चाभू करे ताहि को डंक न लागे ताहिं ।।

कहैं कबीर बंकेज सो, धन्य शब्द प्रताप । ।

(39)

 

।।बावन जंजीरा’  जंजीर तोड़ने का जंजीरा ।।

शून्य शिखर पर बाजी लाया, शब्द भेद कोई बिरले पाया।।

जिन पाया सो अमरपद पाया, जं जं जं जड़ित जंजीर शब्द से ।।

लोहा टूट जाई राय बंकेज मै तोहि को, शब्द दिया बताई ।।

(40)

 

।। बावन जंजीरा’ सिद्धता कला देखने का जंजीरा ।।

सिंग सिंग सिंग सद अक्षर लखाया। शब्द प्रताप ले आँखि देखा।।

जो कोई जादू सेहर चलावै। शब्द प्रताप एको नहीं व्यापे।।

सुनु बंकेज सिद्ध शब्द सतनाम ।।

(41)

 

।। तीर उलटने का जंजीरा ।।

मन को मन आपन करे, वाँह वह हृदया धरै ।।

जो कोई तीर अंग महँ डारे, उलटा तीर वाहि को मारै।।

अंग न व्यापै एको तीर , सब दुःख हरै मोहि सत्तकबीर ।।

(42)

 

।। बावन जंजीरा’ विष बाण दूर करने का जंजीरा ।।

साखी-दिल ते दया न छाड़िये, जब लगि घट में प्रान ।।

कहैं कबीर बंकेज सो, सुनों शब्द परमान ।।

टं ठं ठं ठीका रहे, एति अक्षर जपे, दोष विष वाण ।।

जरे सकलो दूर हो जाय ।।

(43)

 

।। क्रियावान बाँधने का जंजीरा ।।

अस्थित नाम चित चेतहु भाई,  सतप्रताप सतपुरुष दोहाई ।।

कोटिन क्रिया करे जो कोई,  तिलभर बार न बाँके सोई ।।

सं सं सं शम्भो पुकार पुकारी, सतनाम प्रताप । ।

(44)

 

।। सभा में प्रगट होने का जंजीरा ।।

मुख धोवन मुख मोहन, मेरे माथे गुरु बसे, बैरी जाय पाताल ।।

बाघ भै पैसों सिंघ भै निकसो, सभा मांहि करो विलास सतनाम

प्रताप ।।

(45)

 

कबीर साहेब ने इन बावन जंजीरा मंत्रो का इस्तेमाल ,

सिकंदर के दिए गए बावन कसनी के लिए किये थे

 

।। सभा के तेज हरने का जंजीरा ।।

जंक लंक कहि के मन को करे हाथ, ताके सतपुरुष है साथ।।

कहैं कबीर सुनो बंकेज , काहू के लागे नहिं तेज ।।

तो कहँ दिया शब्द लखाय, जाके सुमिरत काल पराय ।।

(46)

 

।। बावन जंजीरा’ शेखतकी के विष बाण नाश करने का जंजीरा।।

सुरति सागर में जाबा कोबासा, शब्द बिरहुली प्रकाशा।।

जब ताकी नै सर्प प्रगासा शब्द बान गहि ताको नासा।।

गरुडी शब्द गर्ड प्रगासा,  विषहर-विषहर करे उचारा।।

विष नहीं लागे शब्द के पारा।।

(47)

 

।। बावन जंजीरा बाघ बाँधने का जंजीरा ।।

बार-बार गुरु शब्द चेताई, राय बंकेज मैं तोहि बुझाई ।।

बाघ हुंडार करे जो जोरा, ताको मारो शब्द संचोरा ।।

साखी – चारो बाँधो चेरुआ, दोनों बाँधो कान ।।

नैना बाँधों जो चितवे, मोहिं छोड़ होय न आन ।।

(48)

 

बावन जंजीरा

।। बावन जंजीरा’अग्नि बाण बुझाने का जंजीरा ।।

निरालंब गुरु भेद लखाया, सार शब्द को भेद बुझाया ।।

जो कोई बान अग्नि चलाई, नीर शब्द से ताहिं बुझाई ।।

पैठे शब्द सार भेद सर भेदा, अग्निन व्यापे सन्देहा ।।

सतप्रताप दुरि दुरि जाई ।।

(49)

 

।। बावन जंजीरा’ देव दया सरूप धारन का जंजीरा ।।

सं सं सं श्रीं सोहं हिं हिं देवं दया करत है ग्यारह वार जपै ।।

(50)

 

।। बावन जंजीरा’अजित शब्द का जंजीरा ।।

बार-बार शब्द जो मैं कहौं, अक्षर में है भेद ।।

सुनु बंकेज कोई जीते नहीं, नाम प्रताप घनै ।।

क्रीं क्रीं क्रीं लंह लहं स्वाहा ।।

(51)

 

।। बावन जंजीरा’ बैरी नाश करने का जंजीरा ।।

विपिन के बैरी बैर करे, पढ़े शब्द चितलाय ।।

बैरी नाश के कारने, शब्द किया उच्चार ।।

क्रिं क्रिं क्रिं स्वाहा ।।

(52)

 

।।बावन जंजीरा’ दृढ़ता ध्यान का जंजीरा ।।

जं जं जं जागृत पुरुष को ध्यान है, जो कोई दृढ़ता होय ।।

सो शब्द को मानि के, दृढ़ता आपु जो होय।।

कभी कोई जीते नहिं, सतशब्द प्रताप है सोय ।।

 

 

‘बावन जंजीरा’ के सिद्ध करने की विधि

 

ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, आश्विन, कार्तिक, माघ, फाल्गुन, चैत्र

इन शुभ मासों में से कोई मास हो उस मास में जब पूर्णिमा या चतुर्दशी

सोमवार, बुधवार, गुरुवार अथवा शुक्रवार की हो सिद्ध करें।

यह सद्गुरु का पाठ या व्रत पूर्णिमा ही को होता है।

परन्तु पूर्णिमा जब ३० दण्ड से कम रहे तब चतुर्दशी को ही शुरु करें।

सिद्ध इस प्रकार करें कि पूर्णिमा या चतुर्दशी जिस दिन उपरोक्त

शुभ दिनों में से कोई दिन हो उस दिन व्रत करे, फलाहार करें।

जाप का स्थान एकान्त हो किसी प्रकार हल्ला-गुल्ला न हो।

जिस स्थान में पाठ करने के लिए निश्चित किये हों, उस स्थान को

श्वेत मिट्टी तथा नये वस्त्र से लीप कर पवित्र करें। चन्दन और इत्र छिड़क दें, श्वेत सुगन्धित फूलों में जैसे- चम्पा, चमेली, बेली, मोगरा इत्यादि जो प्राप्त हो सकें. लावें ।

तीन घंटा या सवा पहर रात्रि व्यतीत होने पर जाप आरम्भ करें।

जाप इस प्रकार करें, जहाँ जाप करने का स्थान निश्चित किये हों उपरोक्त

विधि से लीप-पोत कर पवित्र किये हुए स्थान में चावलों के आटा से चौका पूरें,

कलशा में शुद्ध जल भरकर उसमें पैसा, कसेली डाल दें तब कलशा के मुँह पर

आम के पाँच पत्तें धरें, और उसपर गौ घृत से दीपक जलायें अर्थात् कबीरपंथी महन्त साहब जिस प्रकार से चौका आरती के समय चौका पूरते हैं उसी प्रकार चौका पूर कर कलश आदि रखकर यह कार्य सम्पन्न करें।

प्रसाद के वास्ते-पान, पेड़ा, केला, शक्कर, छुहारा, नारियल, सुपारी, बादाम, लोंग, इलायची इत्यादि सवा पवा भोग मे रखें और धूप के लिये देवदारु, श्वेतचन्दन, कपूर, घी में मिलाकर आम की लकड़ी की अग्नि पर हुमाध देवें (धूप देवें)। तुलसी या श्वेत चन्दन

कबीर जंजीरा बावन कसनी की माला से जाप करें। श्वेत वस्त्र का आसन रखें, पूरब या उत्तर मुख होकर जाप करें। नित्य १०८ बार जाप करें, जाप करने से पहले सद्गुरु का ध्यान कर लें, ध्यान इस श्लोक को पढ़कर करें-

‘ बावन जंजीरा ‘ ध्यान का श्लोक

 

ध्यायेत् सद्गुरु श्वेतरूपमामलं श्वेताम्बरैः शोभितं, कर्णे कुंडल श्वेतशुभ्रमुकुटं हीरा मणि मंडितम्। नानामालामुक्तादि शोभित गलं पद्मासने सुस्थितं। दयब्धि धीर सुप्रसन्न वदनं सद्गुरुं तन्नमामिहं। ।। 1. ।। द्वैपदं द्वै भुजं आकर्षक वदनं द्वै उत्सवं पुष्पं, सेलीकंथमलमूर्ध्वतिलकं श्वेताम्बरी मेखला,

 

चक्रांकितविचित्रतोपलसीतं तेजोमयं विग्रहं, वन्दे सद्गुरु योगदंड सहितं कबीरं करुणामयम्।।2।।

 

इस प्रकार ध्यान कर लेने के बाद जंजीरा का पाठ आरम्भ

 

करें। जाप जितना हो सके करें। कम-से-कम एक हजार एक सौ जाप

 

तो अवश्य करें। पाठ पूरा लेने पर कबीर पंथी साधु को यथाशक्ति

 

भोजन करावें। सिद्ध हो जावे तब मरीज को झाड़े देवे आरोग्य लाभ

 

करें। यदि नित्य पाठ करता रहें तो उसको तीनों काल की बातें मालूम

होती रहेंगी

Leave a Comment