Daya Sagar 2 | दयासागर | Kabir Das | Sandhya Path

सत्यनाम 

सभी भक्त  प्रेमी जनो को साहेब बंदगी इस पोस्ट में दयासागर भाग  २ लिख रहा हूँ आशा करता हूँ आप सभी को दयासागर भाग २  पसंद आएगा साहेब बंदगी

दयासागर
दयासागर

 

दयासागर भाग २ प्रारम्भ 

सद्गुरु की अधिक महिमा, ज्ञान कुण्ड नहाइये ।

भ्रमित मन जब होत सुस्थिर, बहुरि न भवजल आइये ।।

साधु संत की अधिक महिमा, रहनि कुण्ड नहाइये ।

काम क्रोध विकार परिहरि, बहुरि न भवजल आइये ।।

दासातन की अधिक महिमा, सेवा कुण्ड नहाइये ।

प्रेम भक्ति पतिव्रत दृढ़ करि, बहुरि न भवजल आइये ।।

योगी पुरुष की अधिक महिमा, युक्ति कुण्ड नहाइये ।

चन्द्र सूर्य मन गगन थिर करि, बहुरि न भवजल आइये ।।

श्रोता वक्ता की अधिक महिमा, विचार कुंड नहाइये ।

सार शब्द निवेर लीजे, बहुरि न भवजल आइये ।।

गुरु साधु सन्त समाज मध्ये, भक्ति मुक्ति दृढ़ाइये ।

सुरति करि सत्यलोक पहुँते, बहुरि न भवजल आइये ।।

धर्मदास प्रकाश सद्गुरु, अकह कुण्ड नहाइये ।

सकल किलमिष धोय निर्मल, बहुरि न भवजल आइये ।।

साहेब कबीर प्रकाश सद्गुरु, भली सुमति दृढ़ाइये ।

सार में तत्त्व सार दरशे, सोई अकह कहाइये ।।

धर्मदास तत्त्व खोज देखो, तत्त्व में निःतत्त्व है ।

कहैं कबीर निःतत्त्व दरसे आवागमन निवारिये ।।

दयासागर चेतावनी 

कबीर जंमन जाय पुकारिया, धर्मराय दरबार ।

हंस मवासी होय रहा, लगे न फाँस हमार ।।

हमरी शंका ना करे, तुम्हरी धरे न धीर ।

सतगुरु के बल गाजहीं, कहैं कबीर कबीर ।।

कबीर कहे वाकों जाने दे, मेरी दसी न जाय ।।

खेवटिया के नाव पर चढ़े घनेरे आय ।।

बाजा बाजे रहित का, परा नगर में शोर ।

सतगुरु खसम कबीर हैं, (मोहि) नजर न आवे और ।।

सत्त का शब्द सुन भाई, फकीरी अदल बादशाही ।

साधु बंदगी दीदार, सहजे उतरे सायर पार ।।

सोऽहं शब्द सों कर प्रीत, अनुभव अखंड घर को जीत ।

तन में खबर कर भाई, जामें नाम रोशनाई ।।

दयासागर चेतावनी 2

 

सुरति नगर बस्ती खूब, बेहद उलट चढ़ महबूब ।

सुरति नगर में कर सेल, जामें आत्मा को मेल ।।

अमरी मूल संधि मिलाव, तापर राखो बांया पांव ।

दहिना मध्य में धरना, आसन अमर यों करना ।।

द्वादश पवन भर पीजे, शशि घर उलट चढ़ लीजे ।

तन मन वारना कीजे, उलटि निज नाम रस पीजे ।।

तन मन सहित राखो श्वास, इस विधि करो बेहद वास ।

दोनों नैन के करबान, भौंरा उलटि कसो कमान ।।

पर्वत छेके दरिया जान कर ले त्रिकुटी स्नान ।

सहजे परस पद निरबान, तेरा मिटे आवाजान ।।

जामें गैब का बाजार; सरवर दोउ दीसे पार ।

ता बिच खड़े कुदरती झाड़, शोभा कोटी अगम अपार ।।

लागे नव लख तारा फूल, किरनें कोटि जड़िया मूल ।

ताको देखना मत भूल, रमता राम आप रसूल ।।

माया धर्म की कांची, देखो अन्तर की सांची ।

बरसे नीर बिना मोती, चन्दा सूरज की जोती ।।

झलके झिलमिला नारी, ता बिच अलख है क्यारी ।

मानो प्रेम की झारी, खुल गई अगम किंवारी ।।

बेड़ा धर्म का खोया, दीपक नाम का जोया ।

योगी युक्ति से जीवे, प्याला प्रेम का पीवे मौला पीव।।

को दीजे, तन मन कुरबान कर लीजे ।

पड़ी है प्रेम की फाँसी, मनुवा गगन का वासी ।।

बाजे बिना तंती तूर, सहजे उगे पश्चिम सूर ।

भँवरा सुगंध का प्यासा, किया है कमल में वासा ।।

रमिता हंस है राजा, सहजे पलक आवाजा ।

सुन्दर श्याम घन आया, बादल गगन में छाया ।।

अमृत बुन्द झड़ि लाया, देख दोय नैन ललचाया ।

अजब दीदार को पाया, दरिया सहज में नहाया ।।

दरिया उलटि उमगे नीर, ता बिच चले चौसठ छीर ।

हंसा आन बैठे तीर, सहजे चुगे मुक्ता हीर ।।

मिला है प्रेम का प्याला, नहीं है नैन सो न्यारा ।

जीवत मृतक न व्यापे काल, जो त्रिकुटी से पलक न टाल ।।

पलका पीव सों लागा, धोखा दिल का भागा ।

चितावनी चित्त विलास, जब लगि रहे पिंजर श्वास ।।

सोऽहं शब्द अजपा जाप, जहाँ कबीर साहिब आपहि आप

दयासागर

दयासागर साखी

 

चितावनी चित लागी रहे, यह गति लखे न कोय।

अगम पंथ के महल में, अनहद बानी होय ।।

नाम नैन में रमि रहा, जाने विरला कोय

जाको सतगुरु मीलिया, ताको मालूम होय

झंडा रोपा गैब का, दोय पर्वत के संघ

साधु पिछाने शब्द को दृष्टि कमल कर बंध

झलके जोति झिलमिला, बिना बाती बिन तेल

चहुँ दिश सूरज ऊगिया, ऐसा अद्भुत खेल

जागृत रूपी रहित हैं, सत मत गहर गम्भीर

अजर नाम बिनसे नहीं, सोऽहं सत्य कबीर । ।

दयासागर वंदना साखी 

 

वारो तन मन धन सबै, पद परखावन हार ।

युग अनंत जो पचि मरे, बिन गुरु नहिं निस्तार ।।

सरवर तरुवर संतजन, चौथा बरसे मेह ।

परमारथ के कारणे, चारों धारी देह ।।

जीवन यौवन राजमद, अविचल रहे न कोय ।

जो दिन जाय सत्संग में, जीवन का फल सोय ।।

सन्ध्या सुमिरन कीजिये  सुरति निरति एक तार ।

करो अर्पण गुरु चरन में, नाशे विघ्न अपार ।।

अवगुन मेरे बापजी, बकसो गरीब निवाज ।

मैं तो पुत्र कुपुत्र हूँ, तूंहि पिता को लाज ।।

अवगुन किया तो बहुत किया, करत न मानी हार ।

भावे बक्सो बापजी, भावे गर्दन मार ।।

मैं अपराधी जन्म का, नख शिख भरा विकार ।

तुम दाता दुःख भंजना, मेरी करो उबार ।।

सम्रथ डोरी खैच के, रथ को दो पहुँचाय ।

मारग में न छाँड़िये, (साहेब) बाना बिरद लजाय ।।

सतगुरु हमारे एक हैं, आतम के आधार ।

जो तुम छोड़ो हाथ सों, (तो) कौन निभावनहार ।।

सतगुरु हमारे एक हैं, तुम लग मेरी दौर ।

जैसे काग जहाज पर, सूझे और न ठौर ।।

कोटिक चंदा ऊगहीं, सूरज कोटि हजार ।

तिमिर तो नाशे नहीं, गुरु बिन घोर अंधार ।।

राम कृष्ण सो को बड़ा, उनहूँ तो गुरु कीन्ह ।

तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन ।।

मेरे गुरु को दो भुजा, गोविन्द को भुज चार ।

गोविन्द सो कछु ना सरे, गुरु उतारे पार ।।

साहब को सेवक घने, हमको साहब एक ।

ज्यों हरियल की लाकड़ी; साहब निभावे टेक।।

हम पंछी तुम कमलदल, सदा रहो भरपूर ।

हम पर कृपा न छाँड़िये, क्या नियरे क्या दूर ।।

भक्ति भक्त भगवंत गुरु, चतुर नाम वपु एक ।

इनके पद वंदन किये, नाशे विघ्न अनेक।।

 

दयासागर छन्द

 

गुरु दुखित तुम बिन रटहु द्वारे, प्रगट दर्शन दीजिये ।

गुरु स्वामिया सुनु बिनती मोरी, बलिजाऊँ विलम्ब न कीजिये ।।

गुरु नैन भरि भरि रहत हेरो, निमिष नेह न छाँड़िये ।

गुरु बाँह दीजे बंदीछोर सो, अबकी बंद छोड़ाइये ।।

विविध विधि तन भयेउ व्याकुल, बिनु देखे अब ना रहों ।

तपत तन में उठत ज्वाला, कठिन दुख कैसे सहों ।।

गुण अवगुण अपराध क्षमा करो, अब न पतित बिसराइये ।

यह विनती धर्मदास जन की, सतपुरुष अब मानिये ।।

दयासागर साखी

 

नमो नमों गुरुदेव को, नमों कबीर कृपाल ।

नमों संत शरणागति, सकल पाप होय छार ।।

बंदीछोर कृपाल प्रभु विघ्न विनाशक नाम ।

अशरण शरण बंदौं चरण, सब विधि मंगल धाम ।।

धर्मदास विनय करि, विहसि गुरु पद पंकज गहे ।

हे प्रभो ! होहु दयाल, दास चित्त अति दहे ।।

आदि नाम स्वरूप शोभा, प्रगट भाष सुनाइये ।

काल दारुन अति भयंकर, कीट भृंग बनाइये ।।

आदि नाम नि:अक्षर, अखिल पति कारनम् ।

सो प्रगटे गुरु रूप, तो हंस उबारनम् ।।

सद्गुरु चरण सरोज, सुजन मन ध्यावहीं ।

जरा मरण दुख नास्ति, अचल घर पावहीं ।।

गुरु बंदीछोर कृपालु साहब, सकल मति के भूप हो ।

तुम ज्ञान रूप अखण्ड पूरण, आदि ब्रह्म स्वरूप हो ।।

गुरु बंदीछोर दयाल साहब, करहु मम उद्धार हो ।

मैं करत दास पुकार हे गुरो ! तार तारणहार हो ।।

आशा करता हूँ के आप सभी भक्त प्रेमी जनो को ये कबीर साहेब जी की दयासागर भाग २ और साखी पसंद आया होगा।  दयासागर भाग १ इसके पहले ज्ञान गुद्दड़ी संध्या पाठ में दिया गया है।  सभी को साहेब बंदगी

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