इस ब्लॉग पोस्ट में Kabir Das Ji Bhajan के बारे में कुछ आपको ऐसा जानने को मिलेगा । जो आज तक आप नहीं जानते हैं । जीवन की कुछ ऐसी अनसुलझी बातें जो आप आज तक नहीं जानते हैं ।ना समझे हैं ना कभी सुने हैं । Kabir Das Ji Bhajan की हर पंक्ति का अर्थ बताया जाएगा।
Kabir Das Ji Bhajan
1.- लगन कठिन मेरे भाई, गुरु से लगन कठिन मेरे भाई।
लगन लागे बिनु काज न सरिहें, जीव परलय तर जाई।।
2.- मृगा नाद शब्द का भेदी, शब्द सुनन को जाई।
सोइ शब्द सुनि प्राण देत हैं, तनिको न मनमें डराई।।
3.- तजि धन धाम सती होय निकसी, सत्त करण को जाई।
पावक देखि डरे नहीं मन में; कूदि परे सर माँहिं ।।
4.- स्वाति बून्द लिए रटत पपीहरा पिया पिया रट लाई।
प्यासे प्राण जाय क्यों न अबहीं, और नीर नहीं भाई।।
5.- दो दल आय जब सन्मुख, शूरा लेत लड़ाई।
टुक टुक होय गिरे धरनी पै, खेत छाड़ नहीं जाई।।
6.- छोड़ो अपने तन की आशा, निर्भय होय गुणई।
कहें कबीर ऐसी लौ लावे, सहज मिले गुरु आई।।
Kabir Das Ji Bhajan भावार्थ
1.- इस शब्द में कबीर साहब बता रहे हैं । कि गुरु से लगन लगना बहुत कठिन है और जब लगन लग जाएगा । तो हमारे जीवन का उदेश्य पूरा हो जाएगा। इस संसार में आने का जो मतलब है वह पूरा हो जाएगा।
2.- इस पंक्ति का अर्थ है, मृगा जो होता है वह नाद शब्द का प्रेमी होता है। इसी बात का फायदा उठा कर, शिकारी नाद शब्द सुनाने लगता है, और मृगा उस शब्द को सुनने में मुग्ध हो कर उस शब्द के तरफ भागते चला आता है । अपनी जान की परवाह किए बिना।वो एक बार भी अपने प्राण के बारे मे नही सोचता वो सिर्फ उस शब्द में मुग्ध रहता और अपने प्राण को दे देता है। इसी प्रकार की प्रेम को लगन लगना कहते है
3.- इस पंक्ति का अर्थ है, जब एक पतिव्रता स्त्री, धन धाम कुल परिवार रिश्ते नाते सबको छोड़ कर अपने पति के साथ सत्ती होने को जब जाती है। तब वह एक पल के लिए भी आग से नहीं डरती नहीं रोती गील-गीलाती वो खुशी खुशी अपने पति के साथ खुद जल जाती है। जब ऐसा प्रेम शिष्य को अपने गुरु से हो जाता है तब वह इस संसार सागर से मुक्त होकर अपने निज घर को प्राप्त कर लेता है।
4.- इस पंक्ति का अर्थ है, जिस प्रकार पपीहा (एक पंछी ) स्वाति (एक बारिश का नक्षत्र होता है) के एक बूंद के लिए आकाश के तरफ मुँह करके पिया- पिया पुकारते रहता है। वो भले ही क्यूँ ना मर जाए लेकिन वो स्वाति के बूंद के सिवा वो कोई भी पानी नहीं पिता। इसी प्रकार जब गुरु से लगन लग जाये तब ये मानव जन्म सार्थक हो जाता हैं।
5.- इस पंक्ति का अर्थ है, जब दो सेना आमने सामने होती है तब वह ये नहीं सोचती के क्या होगा वो सिर्फ लड़ती है, चाहे उनकी एक-एक अंग ही क्यूँ ना कट-कट कर जमीन पर गिर जाए पर वो अपनी मातृ भूमि को छोड़ कर नहीं जाते। इसी प्रकार की प्रेम जब गुरु जी से हो जाता है तब उस शिष्य के सारे मनोरथ पूरे हो जाते है सारे कार्य सफल हो जाते है
6.- इस पंक्ति का अर्थ है, कबीर साहब कहते है। की अपने तन की आशा को छोड़ दो। एक दम निर्भय हो कर गुण गाओ अपने गुरु का अपने परमात्मा का, कबीर साहेब कहते है के जब इन लोगों की तरह लगन और प्रेम अपने गुरु से लगा लेते है तब गुरु सहज ही आ मिलते है । ये सब प्रमाण दिया गया है। इन्हें अन्यथा ना समझे इन सब में गुरु भक्ति और गुरु से प्रेम करने का एक उदाहरण दिया गया है